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प्रक्षेपक अथवा प्रमोचक रॉकेटों का उपयोग अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। भारत के पास दो प्रचालनरत प्रक्षेपक हैं : पहला ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (पी.एस.एल.वी.) तथा दूसरा भू-तुल्यनकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (जी.एस.एल.वी.)। स्वलदेशी क्रायोजेनिक ऊपरी चरण से युक्ता जी.एस.एल.वी. ने 2 टन भार वाली श्रेणी के संचार उपग्रहों को प्रमोचित करना सक्षम बनाया है। जी.एस.एल.वी. का अगला रूपांतर स्वगदेशी उच्च प्रणोद वाले क्रायोजेनिक इंजन से युक्त् जी.एस.एल.वी. मार्क-III है, जिसमें 4 टन भार वाली श्रेणी के संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने की क्षमता है।
सिंहावलोकन
उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में सटीक रूप से स्थाीपित करने के लिए परिशुद्धता, निपुणता, शक्ति तथा त्रुटिहीन योजना के संयोजन की परमावश्य कता होती है। इसरो के प्रमोचक रॉकेट कार्यक्रम कई केंद्रों में संपादित किय जाते हैं, जहां 5000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र प्रमोचक राकेटों के डिजाइन एवं विकास कार्य के लिए उत्तारदायी है। द्रव नोदन प्रणाली केंद्र तथा इसरो नोदन परिसर, जो कि क्रमश: वलियमला तथा महेंद्रगिरि में स्थित हैं, इन प्रमोचक रॉकेटों के लिए नोदन तथा क्रायोजेनिक चरणों का विकास करते हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार, भारत का अंतरिक्ष-पत्त न है तथा यह प्रमोचक राकेटों के समेकन के लिए उत्तरदायी है। दो प्रचालनरत लांच पैडों से युक्त इस केंद्र से जी.एस.एल.वी. तथा पी.एस.एल.वी. अपनी उड़ानें भरते हैं।
ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (पी.एस.एल.वी.)
भू-तुल्यरकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (जी.एस.एल.वी.)
भू-तुल्यककाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट मार्क III (जी.एस.एल.वी. मार्क III)
परिज्ञापी रॉकेट
विकासरत प्रमोचक
Small Satellite Launch Vehicle (SSLV)
पुनरूपयोगी प्रमोचक रॉकट – तकनीक प्रदर्शक (आर.एल.वी.-टी.डी.)
स्क्रंजेट इंजिन-टीडी
एसएलवी-3
एएसएलवी