जी.एस.एल.वी. मार्क।।।-एम.1/चंद्रयान-2 मिशन होम / गतिविधियाँ / मिशन पूरा
भारत का भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन रॉकेट, जी.एस.एल.वी. मार्क।।।-एम.1 ने चंद्रयान-2 अंतरिक्षयान को 22 जुलाई 2019 को 169.7 कि.मी. के उपभू तथा 45,475 कि.मी. के अपभू पृथ्वी से दूरस्थ बिंदु वाली नियोजित कक्षा में सफलतापूर्वक प्रमोचित किया। यह प्रमोचन सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र-शार, श्रीहरिकोटा के द्वितीय प्रमोचन पैड से किया गया। चंद्रयान-2 मिशन एक अत्यंत जटिल मिशन है, जो इसरो के पिछले मिशनों की तुलना में एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी उन्नति को दर्शाता है। चंद्रमा के अछूते दक्षिणी ध्रुव के बारे में खोज करने के लिए, इसमें एक कक्षित्र, लैंडर तथा रोवर शामिल हैं। इस मिशन को इस प्रकार डिजाइन किया गया है, ताकि चंद्रमा की स्थलाकृति के अध्ययन, भूकंपमापन, खनिज की पहचान एवं वितरण, सतह की रासायनिक बनावट, ऊपरी मिट्टी का ऊष्म-भौतिकीय लक्षण एवं विरल चंद्र वायुमंडल की बनावट के अध्ययन के द्वारा चंद्रमा के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाया जा सके और चंद्रमा की उत्पत्ति तथा विकास के बारे में नर्इ जानकारियाँ प्राप्त हों।
चंद्रयान-2 के अंत:क्षेपण के बाद, इसकी कक्षा को बढ़ाने के लिए अनेक युक्तिचालन किये गए तथा 14 अगस्त 2019 को चंद्र पार निवेशन टी.एल.1 युक्तिचालन के बाद अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकला तथा चंद्रमा के समीप जाने वाले पथ की तरफ बढ़ा। 20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक अंत:क्षेपित किया गया। 100 कि.मी. की चंद्र ध्रुवीय कक्षा में चंद्रमा की परिक्रमा करते हुए, 02 सितंबर 2019 को अवतरण की तैयारी में विक्रम लैंडर, कक्षित्र से अलग हुआ। उसके बाद, इसकी कक्षा बदल कर चंद्रमा की 100x35 कि.मी. की कक्षा में परिक्रमा प्रारंभ करने के लिए कक्षा परिवर्तित करने वाले दो युक्तिचालन किए गए। विक्रम लैंडर का अवतरण योजनानुसार था तथा 2.1 कि.मी. की ऊँचार्इ तक इसका निष्पादन सामान्य प्रेक्षित किया गया। इसके बाद लैंडर का भू-केंद्रों से संपर्क टूट गया।
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चंद्रमा की कक्षा में स्थापित कक्षित्र अपने आठ अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करते हुए चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में खनिज एवं जलाणुओं के मानचित्रण के ज़रिए चंद्रमा के विकास के बारे में हमारी समझ विकसित करेगा। कक्षित्र का कैमरा 0.3 मी. अब तक के किसी चंद्र मिशनों में प्रयुक्त कैमरों से अधिक विभेदन क्षमता वाला है, जो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए अत्यंत उपयोगी होगा। यथावत प्रमोचन तथा मिशन प्रबंधन से नियोजित एक वर्ष के बजाय कुल सात वर्ष का मिशन काल सुनिश्चित हुआ।