टर्ल्स का स्वर्ण जयंती महोत्सव
30 कि.ग्रा. के एक नीतभार के साथ 715 कि.ग्रा. वजनीय दो चरण वाले यू.एस. साउंडिंग राकेट, नाइकी अपाचे, के प्रमोचन के साथ थुंबा ने अपना प्रचालन प्रारंभ किया। यह भारत में आधुनिक रॉकेट आधारित अनुसंधान की शुरुआत को गति देते हुए 21 नवंबर 1963 को 18:25 बजे 207 कि.मी. की ऊँचाई पर पहुँचा। चार वर्षों बाद, 7 कि.ग्रा. कुल वजन, 1020 मि.मी. लंबाई तथा 75 मि.मी. व्यास वाले प्रथम स्वदेशी विकसित साउंडिंग रॉकेट रोहिणी-75 (आर.एच.-75) को 20 नवंबर 1967 को 09:50 बजे प्रमोचित किया गया और यह भारतीय रॉकेट विज्ञान युग का प्रारंभ करते हुए 9.3 कि.मी. की ऊँचाई पर पहुँचा।
बाह्य अंतरिक्ष को शांतिपूर्ण अनुप्रयोगों के लिए उपयोग करने के लक्ष्य से साउंडिंग रॉकेट का उपयोग करते हुए चुंबकीय भुमध्यरेखा के समीप परीक्षण करने के लिए अंतरराष्ट्रीय रेंज के रूप में लैंगमूर प्रोब तथा ट्राइ-मिथाइल एल्यूमीनियम (टी.एम.ए.) नीतभार को साथ ले जाते हुए भा.मा.स. 18:56 बजे नाइकी अपाचे का प्रमोचन किया गया। इसी के साथ 02 फरवरी 1968 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने थुंबा भुमध्यरेखीय रॉकेट प्रमोचन स्टेशन (टर्ल्स) को संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया। राकेट 173 कि.मी. की ऊँचाई पर पहुँचा। इसने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक अन्य उपलब्धि को चिह्न्ति किया।
साउंडिंग रॉकेटों की रोहिणी श्रेणी के अतिरिक्त यू.एस.एस.आर. का एम100, नाइकी अपाचे, नाइकी टोमाहॉक, यू.एस. का एरीकास एवं जूडी डार्ट, फ्रांस का केंटूर एवं ड्रैगन, यू.के. का स्यूक-I एवं II तथा पेट्रल नामक विभिन्न विदेशी रॉकेट भी टर्ल्स से लांच किए गए।
वर्तमान में, इसरो आर.एच. 200, आर.एच. 300 मार्क II तथा आर.एच. 560 मार्क II रॉकेटों का उपयोग करता है, जो वी.एस.एस.सी. तथा एस.डी.एस.सी. से लांच किए जाते हैं। रोहिणी रॉकेटों का लाभ इनके बहु-उपयोगी प्रकृति में है। ये कम लागत तथा कम समय लेने वाले रॉकेट हैं। भारतीय अंतरिक्ष उद्यमों को वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करते हुए, इनका उपयोग ऊपरी वायुमंडल का अन्वेषण करने के लिए विशेष उपकरण तथा विभिन्न प्रौद्योगिकियों का मूल्यांकन करने के लिए आदर्श जांच प्लेटफार्म के तौर पर किया जाता है। अब तक 1500 से अधिक रोहिणी रॉकेटों ने सफलतापूर्वक उड़ान भरे। सहस्त्राब्दि के सबसे लंबे वलयाकार सूर्य ग्रहण द्वारा वायुमंडल पर पड़ने वाले ग्रहण प्रभावों की जांच करने के लिए सूर्य ग्रहण 2010 नामक वैज्ञानिक अभियान का संचालन किया गया।
डॉ. कै. शिवन, अध्यक्ष, इसरो/सचिव, अं.वि., श्री. पी.पी. काले, पूर्व निदेशक, डॉ. ए.ई. मुथुनायागम तथा इसरो के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपस्थिति में, एक कार्यक्रम में प्रथम स्वदेशी साउंडिंग रॉकेट के प्रमोचन की स्वर्ण जयंती तथा टर्ल्स के संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किये जाने का उत्सव वी.एस.एस.सी. ने 2 फरवरी 2018 को मनाया। डॉ. कै. शिवन ने अपने उद्घाटन संबोधन में यह उल्लेख किया कि इसरो अंतरिक्ष मिशनों में पिछले पांच दशक शानदार रहे तथा भविष्य मे और भी चुनौतियाँ हैं। उन्होंने इस यात्रा को चिह्नित किया जो प्रो. विक्रम साराभाई तथा उनके बाद प्रो. सतीश धवन तथा डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में शुरू हुई तथा शानदार परिणाम देते हुए अनेक निष्ठावान व्यक्तित्वों के नेतृत्व में आगे बढ़ीं। इसरो के अध्यक्ष ने स्वर्ण जयंती के याद के तौर पर एक स्मारक का उद्धाटन किया। श्री एस. सोमनाथ, निदेशक, वी.एस.एस.सी. ने कार्यक्रम का आगे संचालन करते हुए ‘जेनेसिस’ नामक एक स्मारक चिह्न का विमोचन किया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने पूर्व कर्मचारियों के योगदानों की प्रसंशा की तथा कहा कि उनकी टीम ने विकास पथ पर एक विरासत का निर्माण किया है।
भारत में 50 वर्षों के रॉकेट विज्ञान विकास को दर्शाता पूर्वावलोकन वीडियो तथा रॉकेट प्रौद्योगिकी को विकसित करने में प्रभावपूर्ण उन्नति का प्रदर्शन किया गया। टर्ल्स तथा रोहिणी साउंडिंग रॉकेट (आर.एस.आर.) के सभी पूर्व कर्मचारियों को बधाई दी गई, जो इस यात्रा के हिस्सा थे।
कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष, इसरो तथा अन्य पदाधिकारियों ने टर्ल्स रेंज के स्वदेशी सुपर कैपेसिटर द्वारा चालित शॉफ नीतभार को साथ ले जाते हुए आर.एच.-200 साउंडिंग राकेट का प्रमोचन देखा।
2 फरवरी 1968 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उपस्थिति में टर्ल्स का संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किए जाने के अवसर पर सभा को संबोधित करते प्रो. साराभाई।
अध्यक्ष, इसरो द्वारा उद्घाटन संबोधन
अध्यक्ष, इसरो द्वारा स्वर्ण जयंती की याद में स्मारक का उद्घाटन
स्मारक चिह्न जारी
आर.एच.- 200 का प्रमोचन देखते अध्यक्ष, इसरो तथा अन्य पदाधिकारी