उदीयमान सूर्य में अति प्रज्वाल: उल्कापिंडों से प्राप्त प्रमाण!
हीडलबर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी के सहयोग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद में कार्यरत वैज्ञानिकों ने हाल ही में उगते हुए सूर्य से विशाल प्रज्वाल के बारे में रिपोर्ट की है। आधुनिक सूर्य से प्रेक्षित उच्च एक्स-वर्ग के प्रज्वाल की तुलना में अति प्रज्वाल तीव्रता में करीब एक मिलियन गुना शक्तिशाली है।
नेचर एस्ट्रोनॉमी में यह लेख प्रकाशित किया गया – http:www.nature.com/articles/s41550-019-0716-0
सौर मंडल की उत्पत्ति तथा प्रारंभिक विकास लंबे अरसे से एक रोचक प्रश्न बना हुआ है। अनेक प्रायोगिक तथा सैद्धांतिक तरीकों से इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर पाने के लिए प्रयास किये जा चुके हैं। उल्कापिंड अपने अनूठे रसायनिकी तथा लगभग पुरातन प्रकृति के कारण सौर मंडल पदार्थ का अत्यधिक महत्वपूर्ण सुगम्य घटक हैं जिसका विश्लेषण सौर मंडल की उत्पत्ति तथा प्रारंभिक विकास की कहानी अनावरित करने में किया जा सकता है।
सौर मंडल के बनने में सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत प्रतिरूप बताता है कि लगभग 4.56 Ga (गीगा एनम, जिसका अर्थ है विलियन वर्ष) पहले एक सघन आण्विक मेघ अंश का गुरुत्वीय निपात के कारण इसके केंद्र में एक आदि सूर्य तथा उदीयमान सूर्य के चारो तरफ घूर्णन करता गैस तथा धूल की एक चक्रिका (डिस्क), तथाकथित सौर नीहारिका का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे इस नीहारिका से सौर मंडल के पिंड (ग्रह, उपग्रह, धूमकेतू, क्षुद्रग्रह) बने हैं जो कणों की रचना से प्रारंभ हुए तथा एकत्र होकर बृहत आकार के पिण्ड बने जो फिर सूक्ष्म ग्रहों में विकसित हुए और अंतत: गुरुत्वीय अन्योन्यक्रिया तथा टकराव सहवर्धन प्रक्रियाओं से होकर ग्रह बने। ये घटनाएं तथा प्रक्रियाएं अत्यधिक ऊर्जावान व प्रसंभाव्य थी तथा कुछ 100 किलो (हजार) वर्षों के आपेक्षिक अल्प समय के पैमाने पर घटित हुईं।
प्रायोगिक अभिलेखों का, जो सौर मंडल के बनने से संबंधित विभिन्न मुद्दों के लिए संकेत प्रदान करते हैं, सौर मंडल में उत्पन्न प्रथम ठोस पदार्थों में मौजूद होना है जिन्हें कैल्शियम, एलुमिनियम आधिक्य अन्तर्वेशन (सी.ए.आई.एस.) कहा जाता है। ऐसे पूर्व गठित सौर मंडल के पिण्डों की पहचान तथा माध्यमिक आयन द्रव्यमान स्पेक्ट्रममिति (आयन सूक्ष्म परीक्षण) तकनीकों का प्रयोग करते हुए उनके समस्थानिक तथा तात्विक संरचनाओं के अध्ययन से हमें ऊपर उल्लेखित कुछ प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो सकते हैं।
एफ्रीमोवका उल्का पिंड के अध्ययन से वर्तमान में विलुप्त लघु जीवन काल वाले कुछ रेडियोन्युक्लाइड्स (उदाहरणार्थ 26Al, 41Ca, 53Mn, 60Fe, 107Pd, 182Hf, 129I, 244Pu) जिनका प्रारंभिक सौर मंडल में अर्द्धजीवनकाल 105 से 108 वर्ष था, के पूर्व में मौजूदगी के स्पष्ट प्रमाण का पता चला है। इन लघु जीवन काल वाले रेडियो न्युक्लाड्स की पूर्व मौजूदगी का अनुमान उचित उल्का पिंड प्रतिरूप में उनसे उत्पन्न न्युक्लाइड्स की अधिकता को देखकर लगाया जा सकता है। यदि उत्पन्न न्युक्लाइड्स में यह अधिकता मूल तत्व के स्थिर समस्थानिक अधिकता से सह संबंधित है तो इसका श्रेय विश्लेषित प्रतिरूप में लघु जीवनकाल वाले न्युक्लाइड्स के स्व-स्थाने क्षय को दिया जा सकता है तथा इससे पिंड के बनने के समय न्युक्लाइड्स की उपस्थिति सुनिश्चित होती है।
प्रारंभिक सौर मंडल में मौजूद लघु जीवन वाले न्युक्लाइड्स के सटीक स्रोत को चिन्हित करना सौर मंडल की उत्पत्ति के दौरान भौतिक-रसायनिक/ब्रह्माण्ड रसायनिक पर्यावरण को निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण है, जिसने हमारे सौर मंडल, जिसमें जीवनदायी ग्रह पृथ्वी है, की अनूठी भव्य संरचना को जन्म दिया। यदि लघु जीवन वाले न्युक्लाइड्स को एक तारकीय स्रोत से आदि सौर आण्विक मेघ में अन्त:क्षेपित किया जाता है तो प्रारंभिक सौर मंडल के पिण्डों में उनकी मौजूदगी, तारक स्रोत में इन न्यूक्लाइड्स की उत्पत्ति तथा प्रारंभिक सौर मंडल के पिण्डों के बनने के अंतराल पर भारी प्रतिरोध करती है और इसलिए आदि सौर मेघ निपात समय मान पर भी प्रतिरोध होता है। दूसरी तरफ, यदि लघु जीवन वाले न्युक्लाइड्स सौर नीहारिका में पदार्थों के साथ सौर ऊर्जाशील कणों के अन्योन्यक्रिया के उत्पाद हैं तो उन्हें पूर्व सौर प्रक्रियाओं (उदाहरणार्थ आदिसौर मेघ निपात हेतु समय मापदंड) के समय चिन्हकों के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। उनकी उपस्थिति प्रारभिंक सौर मंडल में ऊर्जाशील पर्यावरण के बारे में हमें विशिष्ट सूचना प्रदान करती है।
7Be, जो 53.06+0.12 दिनों के अर्धजीवन काल वाले 7Li में अपघटित होता है, प्रारंभिक सौर मंडल से ऊर्जावान पर्यावरण के बारे में सूचना प्राप्त करने हेतु एक अनूठा लघु जीवनकाल वाला वर्तमान में विलुप्त रेडियो न्युक्लाइड है। (1.2+ 1.0)x10-3 (95% Conf.) के 7Be/9Be (1.2+ 1.0) तथा 10Be/9Be (1.6+0.32)10-3 के 10Be/9Be के सदृश 10Be के जीवाश्म अभिलेखों के साथ साथ 7Be का पहला स्पष्ट संसूचन का प्रयोग एफ्रोमोवका से सी.ए.आई. के प्राचीन प्रकार में द्वितीयक आयन द्रव्यमान का प्रयोग करते हुए प्राप्त स्वस्थाने समस्थानिक आँकड़े के अवनति से परिणित हुआ है।
इस सी.ए.आई. में 7Be, 10Be तथा 26Al के समस्थानिक अभिलेखों से हमें निम्नलिखित अति महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होते हैं: (1) उदीयमान सूर्य संवर्धित चुंबकीय गतिविधि की अनेक घटनाओं से गुजरा (2) पूर्व-मुख्य क्रम विकास के “श्रेणी 1” चरण के अंत में घटित हुई संवर्धित किरणन के बाद की घटना अधिक तीव्र थी (3) किरणन, 7Be तथा 10Be का भी मुख्य स्रोत है। लगभग एक वर्ष के लिए पुनर्संयोजन क्षेत्र के समीप एक सी.आई. (कार्बोनेसीयस इवुनासौर) बनावट पूर्ववर्ती के अंतिम श्रेणी 1 चरण के दौरान एक अति ज्वालक (एक्स-किरण प्रदीप्ति Lx
1032 ergs) द्वारा एक तीव्र किरणन से द्रुत गति से विसरित लिथियम समस्थानिक अभिलेखों के संरक्षण के साथ-साथ सी.ए.आई को समस्थानिक विशेषताएं (7Be,10Be, 26Al), आकारिकी (बनावट, रूपात्मक कण आकार) तथा शैल विज्ञान (खनिज बनावट) आदि के बारे में पता लगाया जा सकता है।
इन नियामक निष्कर्षों का खगोल विज्ञान, तारा भौतिकी, ग्रहीय विज्ञान, नाभिकीय भौतिकी, प्रायोगिक शैल विज्ञान के क्षेत्र में प्रायोगिक तथा सैद्धांतिक अध्ययनों पर महत्वपूर्ण परिणाम होता है जो सौर मंडल के निर्माण तथा प्रारंभिक विकास के बारे हमारी वर्तमान समझ को और बढ़ाता है। इस अध्ययन से अनेक रोचक प्रश्न पैदा होते हैं, उदाहरण के लिए, क्या वर्तमान सूर्य की तुलना में ऐसे मिलियन गुना शक्तिशाली एक्स-प्रज्वाल सौर मंडल के इतिहास में प्रारंभ में और बाद में घटित हुए और यदि हुए तो कब और क्यों/क्यों नहीं? लगभग एक वर्ष की अल्प समयावधि में किस यांत्रिकी ने इन पिंडों को कुछ खगोलीय ईकाइयों (1.5x1011 m) की दूरी तक पहुँचाया? विद्यमान पिंडों तथा गैस द्रव्यों पर इन आत्यंतिक घटनाओं के परिणाम तथा प्रभावी समस्थानिक संकेत क्या थे?
चित्र: प्रथम सौर मंडल पिंडों के चारो तरफ आदि ग्रहीय चक्रिका के साथ उदीयमान सूर्य में अति प्रज्वाल का एक कलाकार द्वारा बनाया गया चित्र। विस्तारित चित्र सौर नीहारिका में पहले बने पिंडों के उदाहरण के रूप में उल्का पिंड एफ्रोमोवका से ई40 कैल्शियम एलुमिनियम अंतर्वेशन (सी.ए.आई.) के इलेक्ट्रान परीक्षण से मिथ्या रंजित (लाल, हरा, नीला: आर.जी.बी.) एक्स–किरण मौलिक मैपमोजैक है। सी.ए.आई. के एक्स-किरण मौलिक चित्र में मैग्नीशियम, कैल्शियम तथा एलुमिनियम की अधिकता क्रमश: लाल, हरा तथा नीला रंगों से दिखायी गयी है।