एन.ए.आर.एल. में आयोजित उपग्रह नौवहन एवं नाविक के अनुप्रयोगों पर कार्यशाला
एन.ए.आर.एल., गादंकी में 5-6 अप्रैल, 2018 के दौरान ‘’उपग्रह नौहवन एवं जी.एन.एस.एस./ कार्यशाला के दूसरे दिन के अनुप्रयोगों’’ पर दो-दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय प्रादेशिक नौवहन उपग्रह प्रणाली (आई.आर.एन.एस.एस.) – नाविक की संभाव्यता और उपयोग पर जागरूकता बढ़ाना था। इस कार्यशाला का अभिप्राय देश में नाविक एवं वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली (जी.एन.एस.एस.) के विभिन्न अनुप्रयोगों में प्रगति हेतु आवश्यक ज्ञान एवं कौशल के विकास हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना था।
एक दशक तक, एन.ए.आर.एल., जी.एन.एस.एस. एवं नाविक अभिग्राहियों का भू नेटवर्क स्थापित करते हुए आयनमंडलीय एवं वायुमंडलीय डोमेनों में सक्रिय रूप से अनुसंधान कार्य कर रहा है। चूंकि नाविक सिग्नल आयनमंडल एवं वायुमंडल से गुजरते हैं, इन क्षेत्रों का सुदूर संवेदन जमीन अभिग्राही का उपयोग करते हुए किया जाता है। संबंधित माध्यम में सिग्नल के विलंब का उपयोग करते हुए वायुमंडलीय जलवाष्प एवं आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन की मात्रा का पता लगाया जा सकता है। नाविक सिग्नल की दो आवृत्तियों (एल.5 एवं एस.-बैंड) पर अवकल विलंब का उपयेाग करते हुए आयनमंडलीय इलेक्ट्रान का सीधे ही अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि आयनमंडल एक फैला हुआ माध्यम है। जल वाष्प सिग्नल पर अन्य सभी विलंबों को मिटाते हुए उत्पन्न किया जा सकता है। सिग्नल पर आयनमंडलीय विलंब की दृश्य रेखा भारतीय क्षेत्र में सौर गतिविधि, ऋतु, स्थान एवं दिन के समय के आधार पर 5 से 100 मीटर के बीच परिवर्तित हो सकता है। वायुमंडलीय विलंब 0.5 से 3 मीटर तक के बीच रहता है, जिसमें वायुमंडल की शुष्क गैस तथा जलवाष्प के कारण विलंब शामिल है, जो कि मानसून में अत्यधिक परिवर्तनीयता दर्शाता है।
नाविक अभिग्राही, जो दोनों एल.5 एवं एस.-बैंडों पर 1-2 मि.मी. की परिशुद्धता तक वाहक चरण मापने में सक्षम हैं, को वैज्ञानिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु श्रेष्ठ इष्टत्मीकरण भू नेटवर्क के रूप में संवर्धित किया जाएगा। एन.ए.आर.एल. नाविक एवं जी.एन.एस.एस. के संयुक्त प्रेक्षणों का उपयोग करते हुए तलछटीय जल वाष्प एवं आयनमंडलीय कुल इलेक्ट्रान विषयवस्तु के मानचित्र उत्पन्न करने की येजना बनाता है। ऐसे मानचित्र जल वाष्प एवं आयनमंडल में कालिक परिवर्तनों के साथ-साथ स्थानिक परिवर्तनों का अध्ययन करने में उपयोगी है। जल वाष्प मानचित्र गणितीय मौसम पूर्वानुमान मॉडलों में सीधे ही अनुप्रयुक्त किए जा सकते हैं, जो वर्तमान में क्रियान्वित नहीं किए गए हैं। आयनमंडलीय मानचित्र उच्च विभेदन में अंतरिक्ष मौसम मानीटरण एवं पूर्वानुमान हेतु उपयोग किए जा सकते हैं। उपरोक्त अन्वेषण हेतु सीधे नाविक सिग्नल की उपयोगिता के अतिरिक्त, पृथ्वी से परावर्तित सिग्नल मृदा की नमी की व्युत्पत्ति हेतु उपयोग किए जा सकते हैं। मृदा नमी कृर्षि के साथ-साथ संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान माडलों हेतु महत्वपूर्ण पैरामीटर है।
इन वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के अलावा, नाविक अभिग्राही नेटवर्क सतत एवं दीर्घावधि प्रेक्षण भारत में ‘’भूमध्यरेखीय विशिष्ट विलंब मॉडल’’ उत्पन्न कर सकते हैं। बेहतर ‘’विलंब माडल’’ नाविक सिग्नल का उपयोग करते हुए अनुमानित अवस्थिति में परिशुद्धता को उन्नत बना सकता है। वर्तमान में जी.एन.एस.एस. सिग्नलों हेतु जलवाष्प एवं आयनमंडलीय सुधारों के लिए अत्यधिक उपयोग किए गए मॉडल मध्य-अक्षांश स्थितियों हेतु विकसित किये जाते हैं, जो भारत जैसे भू मध्यरेखीय क्षेत्रों में वास्तविक समय परिवर्तनों में जबरदस्त रूप से परिवर्तित हो जाता है। नाविक ने इन विलंबों हेतु ज्यादा उन्नत सुधार माडल क्रियान्वित किए हैं। तथापि, वास्तविक-समय उच्च-परिशुद्ध अवस्थिती की अपेक्षा रखते हुए अनुप्रयोगों हेतु सुधारों पर और अनुसंधान करने की आवश्यकता है, विशेषकर भू मध्यरेखीय प्लाज्मा बुलबुलों एवं अंतरिक्ष मौसम तूफानों की स्थिति के तहत। इस प्रकार, इस कार्यशाला में नाविक के मूल सिद्धांत, जल वाष्प की भूमिका के अलावा इसके सिग्नल एवं वास्तुकला और नाविक के भावी अनुप्रयोगों को उन्नत बनाने हेतु इलेक्ट्रान घनत्व मानचिण को स्पष्ट किया गया। तथापि, भू आधारित अभिग्राही नेटवर्क के जरिए मौसम पूर्वानुमान एवं अंतरिक्ष मौसम मानीटरण को उन्नत बनाने हेतु जोर दिया गया। वायुमंडलीय/ आयनमंडलीय प्रवणता में अंक्षाशीय परिवर्तन, जिनका अध्ययन मात्र प्रादेशिक नाविक द्वारा मुहैया कराए गए स्थिर उपग्रह लिंक का उपयोग करते हुए किया जा सका, को 55 डिग्री पूर्व अक्षांश में उच्च विभेदन के प्रेक्षण प्राप्त करने में आगामी आई.आर.एन.एस.एस.-1आई. उपग्रह (12 अप्रैल, 2018 को प्रमोचित) की भूमिका को शामिल करते हुए उजागर किया गया।
इस कार्यशाला में 42 पी.एच.डी. छात्रों, 7 स्नातकोत्तर छात्रों एवं भारत भर से 50 संस्थानेां/विश्वविद्यालयों एवं अं.वि. के केंद्रों से 30 संकाय सदस्यों सहित लगभग 80 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इसरो से वैज्ञानिकों एवं विश्वविद्यालयों से विशेषज्ञों ने नाविक अंतरिक्ष खण्ड, समय मानक एवं अपस्थिति, गगन एवं एस.बी.ए.एस. अनुप्रयोग , नाविक एवं गगन पर आधारित उभरती हुई प्रौद्योगिकियों को शामिल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में नाविक सिग्नल के विभिन्न अनुप्रयोगों के बारे में ग्यारह व्याख्यान प्रस्तुत किए। अपनी स्वयं की नौवहन प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इस समूह के अद्वितीय संरूपण के वैज्ञानिक अनुप्रयोग जिनका उपयोग जलवाष्प एवं आयनमंडलीय इलेक्ट्रान घनत्व का मान चित्र बनाने तथा भू भौतिकी विज्ञानों हेतु परावर्तित सिग्नलों की उपयोगिता हेतु किया जा सकता है, पर विचार किया गया। भू आधारित अभिग्राही नेटवर्क के जरिए मौसम पूर्वानुमान को उन्नत बनाने एवं अंतरिक्ष मौसम मानीटरण के अलावा हमारे उपग्रह नौवहन के भावी अनुप्रयोगों को उन्नत बनाने हेतु जलवाष्प एवं इलेक्ट्रान घनत्व मानचित्रण की भूमिका पर जोर दिया गया।
इन व्याख्यानों से नाविक पर चल रही एन.ए.आर.एल. गतिविधियों से वैज्ञानिक परिणामों के माध्यम से भूमध्यरेखीय वायुमंडलीय/आयनमंडलीय क्षेत्रों के विशिष्ट वैज्ञानिक अनुत्तरित प्रश्नों सहित कार्यान्वित होने योग्य वैज्ञानिक उद्देश्यों के कार्यक्षेत्र मुहैया कराए गए। कार्यशाला के दूसरे दिन प्रतिभागियों को एन.ए.आर.एल. की विभिन्न सुविधाओं (परीक्षणात्मक एवं संकल्पनात्मक) को देखने तथा वैज्ञानिकों/इंजीनियरों के साथ विचार-विमर्श करने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
कार्यशाला के प्रतिभागी