भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली की गाथा
आई.आर.एस.-1ए का सफल प्रमोचन पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था जिसने राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु विभिन्न आवश्यकतओं को पूरा करने के लिए उपग्रहों की परिपक्वता को दर्शाया। इसके लिस-। में जमीन पर 148 कि.मी. के प्रमार्ज सहित 72.5 मीटर का स्थानिक विभेदन था।
लिस-।। में प्रत्येक 36.25 मीटर के स्थानिक विभेदन वाले दो अलग प्रतिबिंबन संवेदक थे - लिस-।।ए और लिस-।।बी, और इन्हें अंतरिक्षयान पर इस प्रकार से लगाया गया जिससे यह जमीन पर 146.98 कि.
मी. का सम्मिश्र प्रमार्ज प्रदान कर सकें। अपने लिस-। तथा लिस-।। संवेदकों के साथ आई.आर.एस.-1ए उपग्रह ने त्वरित रूप से भारत को स्थूल तथा मध्यम स्थानिक विभेदनों पर अपने प्राकृतिक संसाधनों का मानचित्रण मानीटरन तथा प्रबंधन करने में सहायता प्रदान की। आँकड़ा उत्पादों की प्रचालनात्मक उपलब्धता ने प्रयोक्ता संगठनों के लिए देश में सुदूर संवेदन अनुप्रयोगों तथा प्रबंधन की प्रचालनात्मक
ता को और अधिक मजबूत किया है।
आई.आर.एस.-1ए के बाद एक समरूपी उपग्रह आई.आर.एस.-1बी का प्रमोचन वर्ष 1991 में किया गया था। आई.आर.एस.-1ए तथा 1बी की क्रमबद्धता ने 11 दिनों की पुनरावृत्ति प्रदान की। आई.आर.एस. श्रृंखला के यह दोनों उपग्रह कृषि, वानिकी, भूविज्ञान तथा जलविज्ञान, आदि जैसे विभिन्न अनुप्रयोग के क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन सूचना प्रदान करने के लिए विश्वसनीय साबित हुए।
उसके बाद से, नीतभारों तथा उपग्रह प्लेटफार्मों में संवर्धित क्षमताओं सहित आई.आर.एस. अंतरिक्षयानों की श्रृंखलाओं का प्रमोचन किया गया। प्रयोक्ता एजेंसियों द्वारा इन मिशनों के आँकड़ों की उपयोगिता से लेकर प्रयोक्ता आवश्यकताओं की पहचान करते हुए, आई.आर.एस. मिशनों की उत्पत्ति तक इनकी गतिविधियों के संपूर्ण विस्तार का मानीटरन राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली (एन.एन.आर.एम.एस.) द्वारा किया जाता है, जो कि देश में सुदूर संवेदन आँकड़े का प्रयोग करते हुए प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन तथा अवसंरचना विकास के लिए एक नोडल एजेंसी है।
सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा, प्राकृतिक संसाधन मानीटरन, महासागर तथा वायुमंडलीय अध्ययन और मानचित्रकला अनुप्रयोगों जैसी विशिष्ट विषय-वस्तु के अनुप्रयोगों पर आधारित आई.आर.एस. मिशनों की परिभाषा के परिणामस्वरूप (i) भूमि/जल संसाधन अनुप्रयोगों (रिसोर्ससैट श्रृंखला तथा रिसैट श्रृंखला); (ii) महासागर/वायुमंडलीय अध्ययनों (ओशनसैट श्रृंखला, इन्
सैट- वी.एच.आर.आर., इन्सैट-3डी, मेघा-ट्रॉपिक्स तथा सरल तथा (iii) बृहत पैमानों के मानचित्रण अनुप्रयोगों (कार्टोसैट श्रृंखला) जैसी विषयवस्तु आधारित उपग्रह श्रृंखला का निर्माण हुआ।
आई.आर.एस.-1ए का विकास आई.आर.एस. कार्यक्रम में विशेष उपलब्धि थी। आई.आर.एस.-1ए के 30 वर्ष पूरा होने तथा भारतीय सुदूर संवेदन कार्यक्रम की सफल यात्रा के अवसर पर, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम विशेषकर, सुदूर संवेदन अनुप्रयोगों के क्षेत्र में, जहाँ भारत दूसरों के लिए एक आदर्श बन गया है, की उपलब्धियों पर गौर करना आवश्यक है। अत्याधुनिक भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह के निर्माण तथा प्रमो
चन और देश के लिए विभिन्न अनुप्रयोगों में आँकड़े के प्रचालनात्मक उपयोग में महत्वपूर्ण प्रगति होती रही।
आज, विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम के दृश्य, अवरक्त, तापीय और सूक्ष्म तरंग क्षेत्र में प्रतिबिंबन क्षमताओं सहित अति स्पेक्ट्रमी संवेदकों को शामिल करते हुए भारतीय भू प्रेक्षण (ई.ओ.) उपग्रहों के व्यूह ने देश में प्रमुख प्रचालनात्मक अनुप्रयोगों को पूरा करने में सहायता की है। यह प्रतिबिंबन संवेदक 1 कि.मी. से 1 मी. से भी बेहतर तक का स्थानिक विभेदन; 22 दिनों से प्रत्येक 15 मिनट तक के पुनरावर्ती प्रेक्षण (कालिक प्रतिबिंबन) तथा 7 बिट से 12 बिट तक विकिरणमापीय रेजिंग प्रदान कर रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर कई अनुप्रयोगों को सहायता मिल रही है। आने वाले वर्षों में, अधिक फुर्तीले अंतरिक्षयानों को शामिल करते हुए नई प्रेक्षणात्मक आवश्यकताओं तथा प्रौद्योगिकी उन्नतियों की ओर ध्यान देते हुए, गत वर्षों के ज्ञान/उपलब्धि को संज्ञान में लेते हुए भारतीय भू प्रेक्षण उपग्रह मजबूत तथा बेहतर प्रौद्योगिकियों की ओर आगे बढ़ रहे हैं।आई.आर.एस.-1ए, स्वदेशी अत्याधुनिक प्रचालनरत सुदूर संवेदन उपग्रहों की श्रेणी का प्रथम उपग्रह है, जिसे बैकनूर स्थित सोवियत कोस्मोड्रोम से 17 मार्च, 1988 को ध्रुवीय सूर्य-तुल्यकाली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रमोचित किया गया था।
इसरो उपग्रह केंद्र, बेंगलूरु में अनुकार परीक्षण हेतु आई.आर.एस.-1ए को तापनिर्वात चैबर में ले जाते हुए (1987-88)
आई.आर.एस.-1ए द्वारा उत्थापन के लिए तैयार “VOSTOK”(17 मार्च, 1988)