मंगल कक्षित्र मिशन
अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में भारत का पहला प्रयास अंकित करते हुए एम.ओ.एम. मंगल सतह के लक्षणों,आकृतिविज्ञान, खनिजविज्ञान तथा मंगल ग्रह के वायुमंडल का अन्वेषण एवं प्रेक्षण करेगा। साथ ही,मंगल के वायुमंडल में मीथेन की विशिष्ट खोज, इस ग्रह पर जीवन की संभाव्यता या पूर्व में जीवन के बारे में सूचना प्रदान करेगी।
अंतरग्रहीय मिशनों में निहित अत्यधिक दूरियां चुनौतीपूर्ण हैं जो इन मिशनों के लिए अत्यावश्यक प्रौद्योगिकियों को विभाजित करने एवं उनमें महारत हासिल करने से अंतरिक्ष अन्वेषण की असीम संभावनाओं को खोल देंगी। पृथ्वी से दूर जाने के बाद, कक्षित्र को मंगल कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व 300 दिनों तक अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में रहना पड़ेगा। गहन अंतरिक्ष संचार एवं नौवहन–मार्गदर्शन–नियंत्रण क्षमताओं के अतिरिक्त, अंतरिक्षयान द्वारा आकस्मिकताओं को प्रबंधन के लिए मिशन को स्वायत्तता की आवश्यकता होगी।
जब एक बार भारत ने अंतरिक्ष में जाने का निश्चय कर लिया तब इसरो को समय नष्ट नहीं करना था क्योंकि अगला प्रमोचन विंडो कुछ ही महीनों का था और वह इस अवसर को खोना नहीं चाहता था क्योंकि अगला प्रमोचन विंडो 780 दिनों के बाद वर्ष 2016 में था। इस प्रकार, मिशन की आयोजना,अंतरिक्षयान एवं प्रमोचक राकेट का निर्माण और सहायक प्रणालियों की तैयारी का कार्य शीघ्र प्रारंभ किया।

प्रमोचक राकेट
एम.ओ.एम. को पी.एस.एल.वी.-सी25 द्वारा प्रमोचित किया गया जो विश्व के अत्यंत विश्वसनीय प्रमोचक राकेट पी.एस.एल.वी. का एक्स.एल. रूपांतर था। इस एक्स.एल. का पूर्व में चन्द्रयान (2008), जीसैट-12 (2011) और रिसैट-1 (2012) का प्रमोचन करने के लिए उपयोग किया गया था।
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अंतरिक्षयान
इन वर्षों में चन्द्रयान-1 तथा आई.आर.एस. एवं इन्सैट श्रृंखला के उपग्रहों में अपनी विश्वसनीयता सिद्ध करने वाले इसरो के आई-1-के उपग्रह बस आधारित एम.ओ.एम. अंतरिक्षयान 850 कि.ग्रा. का ईंधन तथा 5 वैज्ञानिक नीतभारों को ले गया है।
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भू खंड
इस कक्षित्र का बेंगलूर के बाहर स्थित भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आई.एस.डी.एन.) द्वारा अनुवर्तन किया जाता है। आई.एस.डी.एन. के 32 मी. तथा 18 मी. व्यास वाले ऐंटेना नासा के जे.पी.एल. गहन अंतरिक्ष नेटवर्क द्वारा अनुपूरित हैं।

मिशन प्रोफाइल
मंगल कक्षित्र को रेंदेवु प्रोब्लेम के रूप में तैयार किया गया है जहां मंगल कक्षित्र को रवानगी अतिवलयिक प्रक्षेप पथ में युक्तिचालित किया गया हो जहां वह पृथ्वी के एस.ओ.आई. से निकलकर मंगल के एस.ओ.आई. में प्रवेश पाता है।
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