आदित्यक - एल 1 सूर्य का अध्ययन करने वाला प्रथम भारतीय मिशन
आदित्य-1 मिशन की संकल्पना दृश्य उत्सर्जन रेखा प्रभामंडललेखी (वी.ई.एल.सी.) नामक नीतभार को ले जाने हेतु 400 कि.ग्रा. श्रेणी उपग्रह के रूप में किया गया था तथा उसे 800 कि.मी. निम्न भू कक्षा में प्रमोचित करने की योजना थी। सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लेग्रांजी बिंदु के आस-पास प्रभामंडल कक्षा में स्थापित उपग्रह से मुख्य लाभ यह होता है कि इससे बिना किसी आच्छादन/ग्रहण के लगातार सूर्य को देखा जा सकता है। अत: आदित्य-1 मिशन को अब “आदित्य-एल1 मिशन” में संशोधित कर दिया गया है और इसे एल़1 के आस-पास प्रभामंडल कक्षा में प्रविष्ट कराया जाएगा, जोकि पृथ्वी से 1.5 मिलियन कि.मी. पर है इस उपग्रह में परिवर्धित विज्ञान कार्यक्षेत्र तथा उद्देश्यों सहित छह अतिरिक्त नीतभार है।
चित्र सौजन्य: उदयपुर सौर वेधशाला - पी.आर.एल. (भू-आधारित)
परियोजना को अनुमोदन प्राप्त हो चुका है तथा उपग्रह को श्रीहरिकोटा से पी.एस.एल.वी.-एक्स.एल. द्वारा 2019-2020 के समय ढ़ाँचे के दौरान प्रमोचित किया जाएगा।
आदित्य-1 को मात्र सौर प्रभामंडल के प्रेक्षण हेतु बनाया गया था। सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों कि.मी. तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है। इसका तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है, जोकि करीबन 6000 केल्विन के सौर डिस्क तापमान से भी बहुत अधिक है। सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि किस प्रकार प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक होता है।
अतिरिक्त परीक्षणों सहित आदित्य-एल1 अब सूर्य के फोटोस्फियर (कोमल तथा ठोस एक्स-रे), क्रोमोस्फियर (यू.वी.) तथा प्रभामंडल (दृश्य तथा एन.आई.आर.) के प्रेक्षणों को प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, कण नीतभार सूर्य तथा एल1 कक्षा पर पहुँचने से उत्पन्न होने वाली कण अभिवाह का अध्ययन करेगा और मैगनोमीटर नीतभार एल1 के आस-पास प्रभामंडल कक्षा पर चुंबकीय क्षेत्र शक्ति में हो रहे परिवर्तनों का मापन करेगा। इन नीतभारों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से व्यतिकरण के बाहर स्थापित किया जाना होगा तथा यह निम्न भू-कक्षा में उपयोगी नहीं होगा।
नीतभार
मुख्य नीतभार सुधरी हुई सक्षमताओं सहित प्रभामंडललेखी का कार्य करता रहेगा। इस परीक्षण हेतु मुख्य प्रकाशिकी समान रहेगा। संपूर्ण नीतभारों, उनके वैज्ञानिक उद्देश्य तथा इन नीतभारों को विकसित करने वाले अग्रणी संस्थानों की सूची निम्नलिखित है:
- दृश्य उत्सर्जन रेखा प्रभामंडललेखी (वी.ई.एल.सी.): सौर प्रभामंडल के नैदानिक प्राचलों तथा प्रभामंडल द्रव्यमान उत्क्षेपण की उत्पत्ति तथा गतिकी (3 दृश्य और 1 अवरक्त चैनलों) के अध्ययन; गाउस के दस तक सौर प्रभामंडल का चुंबकीय क्षेत्र मापन - भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (आई.आई.ए.)।
- सौर पराबैंगनी प्रतिबिंबन दूरबीन (एस.यू.आई.टी.): निकट पराबैंगनी (200-400 एन.एम.) में सौर फोटोस्फियर और क्रोमोस्फियर के स्थानिक विभेदन का प्रतिबिंबन तथा सौर किरणनता परिवर्तनों का मापन करना - खगोलीय एवं ताराभौतिकी के लिए अंतर-विश्वविद्यालय केन्द्र (आई.यू.सी.ए.ए.)।
- आदित्य सौर पवन कण परीक्षण (ए.एस.पी.ई.एक्स.): सौर पवन लक्षणों के परिवर्तनों तथा इसके वितरण और स्पैक्ट्रल लक्षणों का अध्ययन करना- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी.आर.एल.)।
- आदित्य के लिए प्लाज्मा विश्लेषक पैकेज (पी.ए.पी.ए.): सौर पवन की संरचना तथा उसकी ऊर्जा वितरण को समझना - अंतरिक्ष भौतिक प्रयोगशाला (एस.पी.एल.), वी.एस.एस.सी.।
- सौर निम्न ऊर्जा एक्स-रे स्पेक्ट्रोमापी (एस.ओ.एल.ई.एक्स.एस.): सौर प्रभामंडल के ताप प्रक्रिया के अध्ययन हेतु एक्स-रे प्रकाश का मानीटरन करना - इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक)।
- उच्च ऊर्जा एल1 कक्षीय एक्स-रे स्पेक्ट्रोमापी (एच.ई.एल.आई.ओ.एस.): सौर प्रभामंडल में गतिकी घटनाओं का प्रेक्षण तथा उदभेदन वाली घटनाओं के दौरान कणों की गति बढ़ाने हेतु प्रयोग होने वाली ऊर्जा के आकंलन को प्रदान करना - इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) तथा उदयपुर सौर वेधशाला (यू.एस.ओ.), पी.आर.एल.।
- मेग्नोमीटर: अंतर-ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के परिमाण तथा प्रवृत्ति का मापन - विद्युत प्रकाशिकी तंत्र प्रयोगशाला (लियोस) तथा आईजैक।
बहु नीतभारों को शामिल करने के साथ, यह परियोजना देश भर में अनेक संस्थानों से सौर वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष आधारित यंत्र विन्यास तथा प्रेक्षणों में भागीदारी करने हेतु अवसर प्रदान करता है। अत: परिवर्धित आदित्य-एल1 परियोजना सूर्य के गतिकी प्रक्रियाओं को विस्तृत रूप से समझने हेतु सहायता प्रदान करता है तथा सौर भौतिकी के कुछ अपूर्ण समस्याओं पर भी ध्यान आकर्षित करता है।
प्रस्तरित दृश्य