अतीत से पुन:सामना – पी.आर.एल. वैज्ञानिक के नेतृत्व में किये गए प्रेक्षणों से खगोलीय रहस्य को उजागर करने के सदियों पुराने प्रयास में महत्वपूर्ण उपलब्धि
जेमिनी नार्थ के जी.एन.आई.आर.एस. उपकरण का उपयोग करते हुए, पी.आर.एल. वैज्ञानिक के नेतृत्व में खगोल वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यह खोज किया कि 1670 में पहली बार चमकीले तारे के रूप में देखा गया सी.के. वुल्पेक्यूले इसके बारे में बनाई पूर्व धारणा से लगभग 5 गुना दूर है। यह खोज 1670 में सी.के. वुल्पेक्यूले के विस्फोट को पहले के अनुमान के मुकाबले और अधिक ऊर्जायुक्त बनाती है तथा इसे (सी.के. वुल्पेक्यूले) पिण्डों के उस रहस्यमयी वर्ग में रखती है जो नोवे नामक परिचित प्रकार के विस्फोटों का सदस्य होने के लिए अत्यधिक चमकीला है तथा सुपरनोवे होने के लिए बेहद कम धूमिल। है।
चित्र 1: चित्र के बांए तल के समीप ''a'' से तारांकित सी.के. वुल के साथ साइग्नस (द स्वॉन) का 1670 में खगोलशास्त्री हेवेलियस द्वारा प्रकाशित चार्ट। इसका ''द स्वॉन के सिर के नीचे एक नए तारे'' के रूप में इसका वर्णन किया गया था।
350 वर्ष पहले फ्रांसीसी फकीर/संत एंथेल्मे वोइट्यूरेट ने वुल्पेक्यूला तारामंडल में एक तारा प्रज्वाल को उदय होते देखा। इसके कुछ महीनों बाद वह तारा पोलैरिस (ध्रुव तारा) की भांति चमकीला हो गया तथा एक वर्ष के बाद, इसके बिल्कुल धुमिल होने के पहले तक, उन दिनों के कुछ प्रमुख खगोलशास्त्रियों जैसे हेवेलियस तथा कैसिनी द्वारा इसका मॉनीटरण किया गया। बाद में इस नए तारे का नाम सी.के. वुल्पेक्यूले पड़ा तथा बहुत समय तक इसे श्वेत वामन तारा तथा सूर्य के सदृश तारे से बने एक समीप द्विधारीय तारा प्रणाली के विस्फोट से उत्पन्न होने वाले एक क्षणिक खगोलीय घटना, नोवा के पहले दर्ज किए गए उदाहरण के रूप में जाना जाता था। तथापि, हाल के कुछ परिणामों ने सी.के. वुल्पेक्यूले की नोवा के रूप में लंबे समय से चले आ रहे वर्गीकरण पर संदेह उत्पन्न कर दिया है।
नोवा विस्फोट श्वेत वामन तारे (डब्ल्यू.डी.) के सतह पर तापनाभिकीय अभिक्रिया से उत्पन्न होता है तथा श्वेत वामन तारा समीप के द्विधारीय प्रणाली में साथी तारे से सामग्री का अभिवर्धन करता है। अभिवर्धित हाइड्रोजन आधिक्य पदार्थ श्वेत वामन तारे के सतह पर धीरे-धीरे एक स्तर बनाता है और समय के साथ इस स्तर का द्रव्यमान बढ़ता है। जब अभिवर्धित पदार्थ श्वेत वामन तारे के गुरुत्वाकर्षण से संपीडित और गर्म होता है, तो तापनाभिकीय अभिक्रियाओं को प्रारंभ होने के लिए आवश्यक क्रांतिक ताप तथा दाब अभिवर्धित स्तर के आधार पर अपभ्रष्ट पदार्थ तक पहुंच जाता है, जिससे नोवा विस्फोट शुरु हो जाता है। प्रेक्षण में पाया गया कि नोवा विस्फोट के साथ तारे की चमक में नाटकीय ढंग से 10000 गुना या उससे अधिक की वृद्धि होती है। खगोलज्ञ नोवे तथा सुपरनोवे नामक दो उभय प्रकार के उग्र तारकीय विस्फोटों से परिचित हैं तथा इनके बारे में मौलिक समझ रखते हैं। किंतु लंबे समय से नोवा विस्फोट के रूप में माना जाने वाला सी.के. वुल विस्फोट हमारी आकाशगंगा में उन नाममात्र घटनाओं में से एक हैं, जो इन दो में से किसी भी वर्ग में नहीं आता।
वर्ष 2015 में खगोलज्ञों की एक टीम का यह सुझाव था कि वर्ष 1670 में सी.के. वुल्पेक्यूले का अविर्भाव दो सामान्य तारों के प्रलयात्मक टकराव के कारण हुआ था। तीन वर्षों के बाद उन्हीं खगोलज्ञों ने 1670 में हुए विस्फोट के स्थल के निकट एलूमीनियम के रेडियोधर्मी समस्थानिक की अपनी खोज के बाद बताया कि उन दो तारों में से एक फूला हुआ एक अवरक्त विशाल तारा था। स्थिति को और जटिल बनाते हुए खगोलज्ञों के एक दूसरे समूह ने एक अलग व्याख्या दी। अपने शोधपत्र में जो 2018 में प्रकाशित भी हुआ, उन्होंने सुझाया कि वर्ष 1670 में हुई अचानक चमक का कारण एक भूरे वामन तारे – एक असफल तारा जो इतना छोटा है कि सूर्य को ऊर्जा को देने वाले ताप नाभिकीय संलयन से चमक नहीं सकता – और श्वेत वामन तारे का मिलना था।
अब, सी.के. वुल्पेक्यूले के रहस्य को और बढ़ाते हुए, 8.2 मी. जेमिनी टेलीस्कोप से मिले नए प्रेक्षण बताते हैं कि यह रहस्यमयी खगोलीय पिंड पहले की रिपोर्टों की तुलना में अत्यधिक दूर है तथा इसने अत्यधिक उच्च गति से गैस उत्सर्जित किया था।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद के दीपांकर बैनर्जी के नेतृत्व में इस अंतरराष्ट्रीय टीम ने शुरुआत में सी.के. वुल्पेक्यूले के अंदर रेडियोधर्मी एलुमीनियम के वर्ष 2018 के संसूचन की पुष्टि करने की योजना बनाई। जब उन्हें यह एहसास हुआ कि अवरक्त में इसका संसूचन उनकी सोच से अधिक कठिन होगा, तब खगोलज्ञों ने संशोधन किया और सी.के. वुल्पेक्यूले के पूरे क्षेत्र में इसके बाह्यतम छोरों पर नेब्यूलोसिटी के दो गुच्छों सहित अवरक्त प्रेक्षण प्राप्त किया। खोज का प्रमुख बिंदु नीहारिका (नेब्युला) के बाहरी किनारों पर प्राप्त किया गया स्पेक्ट्रोस्कोपिक मापन था। वहां संसूचित रेड शिफ्टेड और ब्लू शिफ्टेड आयन परमाणुओं के चिह्न यह दर्शाते हैं कि नीहारिका पहले के प्रेक्षणों के सुझावों की अपेक्षा काफी तीव्र गति से फैल रही है। गैस लगभग 7 मिलियन कि.मी./घंटा की अनपेक्षित उच्च गति पर चलते हुए पाई गई, जो कि सी.के. वुल्पेक्यूले के बारे में पहले बताई परिकल्पना से अलग एक कहानी बयान करती है।
पिछले दस वर्षों में नीहारिका के विस्तारित होने की गति तथा सबसे किनारे गैस की पतली लकीर में हुए विस्थापन का मापन करके तथा निशाकाश पर नीहारिका के झुकाव का कारण बताते हुए जिसका अनुमान दूसरे खोजकर्ताओं द्वारा भी पहले लगाया गया था, टीम इस निष्कर्ष पर पहुँची कि सी.के. वुल्पेक्यूले सूर्य से लगभग 10,000 प्रकाश वर्ष दूर है, जोकि पहले के अनुमान से लगभग पाँच गुना अधिक है। इसका आशय यह है कि वर्ष 1670 का विस्फोट अत्याधिक चमकीला था, जिसमें पहले के अनुमान से लगभग 25 गुना अधिक ऊर्जा मुक्त हुई। निर्गत ऊर्जा की बड़ी मात्रा के इस अनुमान का अर्थ यह है कि वर्ष 1670 में सी.के. वुल्पेक्यूले के अचानक दिखाई पड़ने के पीछे जो भी घटना थी, वह एक साधारण नोवा से कहीं अधिक तीव्र और प्रबल थी।
चित्र 2: हाइड्रोजन एच- अल्फा उत्सर्जन के लाल प्रकाश में प्रतिबिंबित सी.के. वुल के चारों और धुमिल होरा ग्लास नीहारिका/केंद्रीय तारा प्रकाशिक या अवरक्त दोनों में से किसी में भी नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि यह धूल के घने स्तरों से घिरा हुआ है [साभार: जेमिनी वेधशाला/एन.ओ.आई.आर. प्रयोगशाला/ एन.एस.एफ./ ए.यू.आर.ए.]।
निर्गत ऊर्जा को ध्यान में रखते हुए, प्राप्त परिणाम सी.के. वुल्पेक्यूले को नोवा और सुपरनोवा के बीच रखते हैं। यह आकाशगंगा में बेहद कम ऐसे पिंडों में से एक है, तथा मध्यवर्ती इस वर्ग के पिंडों के विस्फोट का कारण अज्ञात है। ऐसा लगेगा कि हम सभी यह जानते हैं कि सी.के. वुल्पेक्यूले क्या नहीं है, किंतु यह कोई नहीं जानता है कि यह क्या है। सी.के. वुल्पेक्यूले नीहारिका की दृश्य उपस्थिति तथा टीम द्वारा प्रेक्षित उच्च गति, खगोलज्ञों को हमारी आकाशगंगा या बाहरी तारामंडलों में अतीत में हुए ऐसी ही घटनाओं के अवशेषों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं।
संदर्भ: डी. पी. के. बैनर्जी, टी.आर. गेबेल, ए. इवांस, एम. शाहबंदेश, सी.ई. वुडवार्ड, आर.डी.गेर्ज, एस.पी.एस.आयर्स, एस. स्टारफील्ड और ए. जिज्स्ट्रा द्वारा ''नियर-इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कॉपी ऑफ सी.के. वुल्पेक्यूले: रिवीलिंग अ रिमार्केबली पावरफुल ब्लास्ट फ्रॉम द पास्ट''
एस्ट्रोफीजिकल जर्नल लेटर्स प्रकाशनाधीन, प्रीप्रिंट arXiv:2011.02939v1 पर उपलब्ध है।
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