अध्यक्ष इसरो, सचिव अंतरिक्ष विभाग होम / परिचय /अध्यक्ष इसरो, सचिव अंतरिक्ष विभाग
डॉ. वी नारायणन, जो एक रॉकेट और अंतरिक्ष यान नोदन विशेषज्ञ हैं, उन्होंने वर्ष 1984 में इसरो की सेवा प्रारंभ की और विभिन्न पदों पर कार्य किया। प्रारंभिक चरण के दौरान, साढ़े चार वर्षों तक, उन्होंने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में परिज्ञापी रॉकेटों और संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी) तथा ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) के ठोस नोदन के क्षेत्र में काम किया। उन्होंने अपक्षरक नोजल प्रणाली, सम्मिश्र मोटर योजना और संयुक्त प्रज्वालक आवरण की प्रक्रिया आवरण, प्रक्रिया नियंत्रण और कार्यान्वयन में योगदान दिया।
1989 में, उन्होंने आईआईटी-खड़गपुर में प्रथम रैंक के साथ क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एम.टेक पूरा किया और द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) में क्रायोजेनिक नोदन के क्षेत्र में शामिल हो गए। इसरो के भू-तुल्यकाली प्रमोचन यान, अर्थात् जीएसएलवी मार्क-II और जीएसएलवी मार्क-III, जिनमें अंतिम चरण के रूप में क्रायोजेनिक नोदन चरण हैं, 2-टन और 4-टन वर्ग के संचार उपग्रहों को भू अंतरण कक्षा में स्थापित करने में सक्षम हैं।
शुरूआत में इस क्षेत्र में काम करने वाले कुछ क्रायोजेनिक सदस्यों में से एक के रूप में, उन्होंने मौलिक अनुसंधान, सैद्धांतिक और प्रायोगिक अध्ययन किए और क्रायोजेनिक उपप्रणालियों, अर्थात् गैस जेनरेटर, 1-टन प्रणोद के सब-स्केल क्रायोजेनिक इंजन और 12-टन प्रणोद के प्रणोद चैंबर के सफल विकास और परीक्षण में योगदान दिया।
प्रारंभिक उड़ानों को पूरा करने के लिए जीएसएलवी मार्क-II यान के क्रायोजेनिक चरण के विकास के लिए आवश्यक लंबे समय को ध्यान में रखते हुए, कुछ क्रायोजेनिक चरण के हार्डवेयर रूस से खरीदे गए थे। क्रायोजेनिक नोदन में एक विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने मिशन प्रबंधन प्रणालियों के विकास, अनुबंध प्रबंधन और प्राप्त किए गए क्रायोजेनिक चरणों के साथ जीएसएलवी मार्क-II यान की सफल उड़ानों में योगदान दिया।
जीएसएलवी मार्क-II के निरंतर संचालन के लिए शुरूआत में, इसरो ने भारत में विनिर्माण हेतु क्रायो चरण की प्रौद्योगिकी अधिग्रहण की योजना बनाई थी। तथापि, भू-राजनीतिक कारणों से प्रौद्योगिकी अधिग्रहण सफल नहीं हुआ और इसरो ने सीयूएस को स्वदेशी रूप से विकसित करने का निर्णय लिया। डॉ. वी. नारायणन ने क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (सीयूएस) के सफल विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे जीएसएलवी मार्क-II यान को प्रचालनात्मक बनाने में योगदान दिया।
सीएआरई (केयर) मॉड्यूल के साथ जीएसएलवी मार्क-III प्रायोगिक मिशन के लिए उन्होंने निष्क्रिय क्रायोजेनिक चरण की कल्पना की एवं उसे साकार किया और सफल प्रायोगिक उड़ान में योगदान दिया। सी25 क्रायोजेनिक परियोजना के परियोजना निदेशक के रूप में, उन्होंने तकनीकी-प्रबंधकीय नेतृत्व प्रदान किया, जीएसएलवी मार्क-III प्रमोचन यान के 25-टन क्रायोजेनिक नोदन प्रणाली की कल्पना, डिजाइन और विकास किया, जो 200kN का प्रणोद विकसित करने वाले इंजन द्वारा संचालित है। उन्होंने डिजाइन, विश्लेषण, प्राप्ति, परीक्षण और प्रमोचन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की स्थापना में योगदान दिया। उनके अभिनव दृष्टिकोण के कारण, सी25 क्रायो चरण को सभी सफल परीक्षणों के साथ उनके मार्गदर्शन में सबसे कम समय सीमा में विकसित किया गया था और इसे जीएसएलवी मार्क-III यान में शामिल किया गया था। इसके बाद, उन्होंने चरण का प्रचालन भी किया।
उनके योगदान ने भारत को जटिल और उच्च निष्पादन वाली क्रायोजेनिक नोदन प्रणालियों वाले दुनिया के छह देशों में से एक बना दिया, जिससे इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल हुई।
समानांतर रूप से, उन्होंने 2001 में आईआईटी-खड़गपुर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में अपनी पीएच.डी. पूरी की। उनके एम.टेक थीसिस के हिस्से के रूप में किया गया कार्य, जिसका शीर्षक था "क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन में प्रवाह नियंत्रण के लिए कैविटेटिंग वेंचुरीज़" और पीएच.डी. थीसिस , जिसका शीर्षक था "क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के लिए थ्रस्ट एंड मिक्सचर रेगुलेशन सिस्टम", उसका सीधे भारतीय क्रायोजेनिक नोदन प्रणाली के विकास में उपयोग किया गया था।
जीएसएलवी एमके-III एम1/चंद्रयान-2 मिशन हेतु , एल110 द्रव कोर चरण और सी25 क्रायोजेनिक चरण को यान के लिए प्रदान किया गया था। ऑर्बिटर और विक्रम लैंडर के लिए नोदन प्रणाली, जिसमें मृदु अवतरण के लिए उपरोधनीय प्रणोदक शामिल हैं, उसे भी उनके मार्गदर्शन में चंद्रयान-2 मिशन के लिए विकसित और प्रदान किया गया था। चंद्रयान-2 लैंडर के कठोर अवतरण के कारणों का अध्ययन करने के लिए गठित राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने प्रेक्षणों की कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक कारणों और सुधारात्मक कार्यों को स्पष्टता से बताने मे योगदान दिया। उन्होंने चंद्रयान-3 के लिए सभी नोदन प्रणालियों को विकसित किया और उन्हें प्रदान किया।
भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान (गगनयान) कार्यक्रम के लिए, उन्होंने एलवीएम3 यान के सी25 और एल110 द्रव चरणों की मानव अनुकूलता पर कार्य किया और प्रथम गगनयान मिशन के चरणों को सफलतापूर्वक सुपुर्द किया। क्रू मॉड्यूल एवं सर्विस मॉड्यूल तथा केबिन दबाव नियंत्रण प्रणाली, ताप और आर्द्रता नियंत्रण प्रणाली के लिए नोदन मॉड्यूल का विकास पूरा हो गया है। परीक्षण यान के नोदन चरण को टीवीडी1 मिशन में सफलतापूर्वक विकसित और प्रमाणित किया गया था।
एलवीएम3 यान की जीटीओ नीतभार क्षमता को बढ़ाने और भविष्य के भारतीय उच्च भार वाले राकेटों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्होंने टीम का मार्गदर्शन किया एवं एलओएक्स-केरोसिन अर्ध-क्रायोजेनिक नोदन प्रणाली को डिजाइन किया तथा इसके विकास के लिए तकनीकी-प्रबंधकीय नेतृत्व प्रदान किया। उन्होंने उच्च प्रणोद (22-टन) इंजन के साथ उच्च प्रणोदक (32 टन एलओएक्स और एलएच2) के भरण के साथ सी25 क्रायोजेनिक चरण के प्रदर्शन में सुधार हेतु विकास कार्य भी शुरू किया और परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया। उनकी टीम 1100kN प्रणोद एलओएक्स-सीएच4 इंजन और 300mN और कम पावर वाले विद्युत नोदन प्रणोद भी विकसित कर रही है। उन्होंने अंतरिक्ष यान प्रणोदन क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने जीएसएलवी मार्क-II डी3 और जीएसएलवी मार्क-II एफ02 वाहनों की दो विफलता विश्लेषण समितियों (एफएसी) के सदस्य और प्रथम भारतीय क्रायोजेनिक ऊपरी चरण इंजन एफएसी के सदस्य सचिव के रूप में योगदान दिया। डॉ. नारायणन इसरो के 12वीं पंचवर्षीय योजना प्रारूपण समूह के सदस्य थे और उन्होंने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान नोदन प्रणाली के विकास को अंतिम रूप देने में योगदान दिया। उन्होंने अगले 20 वर्षों (2017-2037) के लिए इसरो के नोदन की रूपरेखा को भी अंतिम रूप दिया। एलपीएससी के निदेशक के रूप में, पिछले 7 वर्षों के दौरान, उन्होंने प्रमोचन यान और अंतरिक्ष यान मिशनों के लिए 226 द्रव नोदन प्रणालियाँ प्रदान की हैं। उन्होंने द्रव नोदन के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास संबंधी गतिविधियों और बुनियादी ढांचे के विकास को आगे बढ़ाने में भी योगदान दिया।
डॉ. वी नारायणन, एलपीएससी-आईपीआरसी समन्वय समिति एवं कार्यक्रम प्रबंधन परिषद-अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली के अध्यक्ष भी थे।
डॉ. नारायणन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के भूतपूर्व छात्र रहे हैं और वहां से उन्होने वर्ष 1989 में क्रायोजेनिक इंजीनियरी में प्रथम स्थान के साथ एमटेक की डिग्री और वर्ष 2001 में एयरोस्पेस इंजीनियरी में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उन्हें प्रथम स्थान के साथ आईआईटी खड़गपुर से एम टेक की डिग्री प्राप्त करने पर रजत पदक, एस्ट्रोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (एएसआई) से स्वर्ण पदक, राकेट तथा संबंधित प्रौद्यगिकियों के लिए एएसआई पुरस्कार, हाई एनर्जी मटेरियल्स सोसायटी ऑफ इंडिया से टीम पुरस्कार, इसरो का उत्कृष्ट उपलब्धि एवं निष्पादन उत्कृष्टता पुरस्कार तथा टीम उत्कृष्टता पुरस्कार प्राप्त हैं। आपको सत्य भामा विश्वविद्यालय, चेन्नई से डॉक्टर आफ साइंस (ओनोरिस कोसा) की मानद उपाधि भी प्राप्त है। आपको आईआईटी, खड़गपुर द्वारा प्रतिष्ठित भूतपूर्व छात्र पुरस्कार–2018, इस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के राष्ट्रीय डिजाइन एवं रिसर्च फोरम से राष्ट्रीय डिजाइन पुरस्कार-2019 और एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (एईएसआई) के राष्ट्रीय एयरोनॉटिकल पुरस्कार-2019 से सम्मानित किया गया है।
डॉ. नारायणन, इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एस्ट्रोनॉटिक्स (आईएए) के सदस्य, इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के फेलो, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (आईएएफ) की अंतरिक्ष नोदन समिति के सदस्य, इंडियन सोसायटी ऑफ सिस्टम्स फॉल साइंस एंड इंजीनियरिंग (आईएसएसई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के फेलो, भारतीय क्रायोजेनिक काउंसिल के फेलो, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के फेलो हैं, आईएनएई गवर्निंग काउंसिल और विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यावसायिक निकायों के सदस्य के रूप में कार्य किया है। आप भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएसटी) के शासी परिषद तथा बोर्ड के सदस्य और कुछ इंजीनियरी कॉलेजों के शैक्षिक परिषद के सदस्य के रूप में भी अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
डॉ. नारायणन ने बहुत से तकनीकी लेख (आंतरिक रिपोर्टः 1200, पत्रिका/सम्मेलन लेखः 50 तथा पुस्तक के अध्यायः 3) प्रकाशित किए हैं। आपने आईआईटी तथा एनआईटी सहित इंजीनियरी संस्थाओं में बड़ी संख्या में बीज व्याख्यान और दीक्षांत भाषण प्रस्तुत किए हैं।