28 सितंबर, 2025
28 सितंबर, 2025 को, खगोल विज्ञान के लिए समर्पित भारत की पहली बहु-तरंगदैर्ध्य अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट (https://www.isro.gov.in/AstroSat.html) ने अभूतपूर्व खोजों और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को समर्पित सेवाओं से भरा एक दशक पूरा किया। एस्ट्रोसैट को 28 सितंबर, 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी30 के माध्यम से प्रमोचित किया गया था। एस्ट्रोसैट पराबैंगनी (यूवी), प्रत्यक्ष और उच्च ऊर्जा एक्स-रे किरणों की विस्तृत ऊर्जा सीमा में एक साथ ब्रह्मांड का प्रेक्षण करने में सक्षम है, जिससे यह विभिन्न ब्रह्मांडीय घटनाओं को समझने का एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है।
एस्ट्रोसैट ने अपनी वैज्ञानिक यात्रा की शुरुआत एक लाल विशालकाय तारे से जुड़ी दो दशक पुरानी पहेली को सुलझाकर की थी, जो पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश और अवरक्त दोनों में असामान्य रूप से चमकीला था। तब से, यह लगातार उल्लेखनीय परिणाम दे रहा है। इसकी कई उत्कृष्ट खोजों में अंतरिक्ष में सबसे तेज, चौड़े कोण की यूवी नेत्र का उपयोग करके लगभग 9 बिलियन प्रकाश-वर्ष की आश्चर्यजनक दूरी से दूरस्थ यूवी फोटोनों का पता लगाते हुए ( https://www.isro.gov.in/AstroSat discover.html) यह दर्शाना कि बटरफ्लाई (तितली) नेबुला का उत्सर्जन पूर्व में ज्ञात आकार(https://www.isro.gov.in/AstroSat_Picture_of_the_month_Oct_2018.html) की तुलना में तीन गुना अधिक है, एक्स-रे ध्रुवीकरण अध्ययन (https://www.isro.gov.in/AstroSat Picture of the Month (May 2018).html), एक तारा अपनी किशोरावस्था को पुनः जी रहा है (https://www.isro.gov.in/AstroSat Picture apr3.html), आकाशगंगाओं का विलय (https://www.isro.gov.in/AstroSat Picture of the Month(June 2018).html), बहुत तेजी से घूमने वाले ब्लैक होल की खोज और आकाशगंगा में द्विआधारी तारों से एक्स-रे उत्सर्जन पर कई अन्य निष्कर्ष शामिल हैं।
एस्ट्रोसैट बहु-संस्थान मिशन का एक वास्तविक उदाहरण है। यूआरएससी, लियोस, सैक, वीएसएससी, पीआरएल जैसे प्रमुख इसरो केंद्रों के अलावा, टीआईएफआर, आईआईए, आईयूसीएए जैसे कई भारतीय अनुसंधान संस्थानों ने एस्ट्रोसैट पर लगे पाँच वैज्ञानिक नीतभारों में से चार के विकास में योगदान दिया है। यूवीआईटी और एसएक्सटी ने क्रमशः कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (सीएसए) और ब्रिटेन के लीसेस्टर विश्वविद्यालय के साथ भी सहयोग किया, जिससे एस्ट्रोसैट अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक वास्तविक प्रयास बना।
एस्ट्रोसैट का वैश्विक स्वरूप तब और भी स्पष्ट हो जाता है जब हम इसके उपयोगकर्ताओं पर विचार करते हैं। एस्ट्रोसैट के पंजीकृत उपयोगकर्ताओं में अमेरिका से लेकर अफ़गानिस्तान और अंगोला जैसे दुनिया भर के 57 देशों के लगभग 3400 उपयोगकर्ता शामिल हैं।
भारत में एस्ट्रोसैट ने अंतरिक्ष विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में मदद की है और खगोल भौतिकी अनुसंधान को 132 भारतीय विश्वविद्यालयों तक पहुँचाया है। इस वेधशाला के लगभग आधे उपयोगकर्ता भारतीय वैज्ञानिक और छात्र हैं, जो खगोलविदों की एक नई पीढ़ी को बढ़ावा दे रहे हैं।
यद्यपि एस्ट्रोसैट अपने डिजाइन जीवन से कहीं अधिक समय तक काम कर चुका है, फिर भी एस्ट्रोसैट पर मौजूद सभी पांच वैज्ञानिक प्रयोग संतोषजनक ढंग से काम कर रहे हैं और उम्मीद है कि वेधशाला आने वाले वर्षों में और भी कई नवीन एवं रोमांचक परिणाम प्रदान करती रहेगी।
चित्र 1: एस्ट्रोसैट यूवीआईटी द्वारा देखी गई एनजीसी 2336 एक बार के आकार की घुमावदार आकाशगंगा है जो 100 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर है।
चित्र 2: एस्ट्रोसैट यूवीआईटी द्वारा देखी गई एनजीसी1365 जिसे फोरनेक्स प्रोपेलर आकाशगंगा के नाम से भी जाना जाता है, 56 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित दो बार के आकार की आकाशगंगा है।