फरवरी 28, 2025
भारत के पहले समर्पित अंतरिक्ष आधारित सौर मिशन, आदित्य-एल1 ने अपने वैज्ञानिक नीतभारों से एक अभूतपूर्व प्रेक्षण किया है- इसने निकट पराबैंगनी (एनयूवी) बैंड में दर्ज किए गए प्रतिबिंबों में, निम्न सौर वायुमंडल, अर्थात् प्रकाश मंडल और वर्ण मंडल में सौर ज्वाला 'कर्नेल' की पहली छवि को कैद किया है। यह प्रेक्षण और इससे संबंधित वैज्ञानिक परिणाम सूर्य की विस्फोटक गतिविधि तथा पृथ्वी पर इसके प्रभाव को समझने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं।
आदित्य-एल1 मिशन को 2 सितंबर, 2023 को इसरो पीएसएलवी सी-57 रॉकेट द्वारा प्रमोचित किया गया था। 6 जनवरी, 2024 को अंतरिक्ष यान को पहले पृथ्वी-सूर्य लैग्रेंज बिंदु, जिसे लैग्रेंज बिंदु L1 के रूप में जाना जाता है, उसके चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था। L1 बिंदु पृथ्वी से सूर्य की ओर 1.5 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर है। विशेष लाभ प्रदाता बिंदु L1 अंतरिक्ष यान को बिना किसी ग्रहण और उपगूहन के विभिन्न सौर गतिविधियों का लगातार प्रेक्षण करने की सुविधा प्रदान करता है। इसके उन्नत उपकरण, जिनमें सौर पराबैंगनी प्रतिबिंबन टेलीस्कोप (एसयूआईटी), सौर निम्न ऊर्जा एक्स-रे स्पेक्ट्रममापी (सोलेक्क्स) और उच्च ऊर्जा L1 कक्षीय एक्स-रे स्पेक्ट्रममापी (हीलियोस) शामिल हैं, निकटवर्ती पराबैंगनी (एनयूवी) तरंगदैर्ध्य से लेकर मृदु एवं ठोस एक्स-रे तक सौर ज्वालाओं का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने के लिए एक साथ काम करते हैं। एसयूआईटी नीतभार को विभिन्न इसरो केंद्रों के सहयोग से इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) द्वारा विकसित किया गया है। SoLEXS और HEL1OS नीतभार को यू आर राव उपग्रह केंद्र (URSC), बेंगलूरु द्वारा विकसित किया गया है। एसयूआईटी वैज्ञानिक आवश्यकताओं के आधार पर NUV के पूरे सौर डिस्क या वैज्ञानिक रुचि के सौर डिस्क पर एक विशिष्ट क्षेत्र में 11 विभिन्न तरंगबैंड में उच्च-विभेदन वाले प्रतिबिंब ले सकता है। विभिन्न तरंगदैर्ध्य के विभिन्न विकिरण अलग-अलग ऊँचाई/परतों से सौर वायुमंडल को छोड़ने के कारण वैज्ञानिकों को सूर्य के युग्मन और गतिशीलता का अध्ययन करने हेतु उसके वायुमंडल की कई परतों का अध्ययन करने की सहूलियत प्राप्त होती है। सोलेक्स और हीलियोस उपकरण सौर एक्स-रे उत्सर्जन का मानिटरन करते हैं, जो सौर ज्वाला गतिविधि का पता लगाने में मदद करते हैं। आदित्य-एल1 के विभिन्न उपकरणों का सहभागी दृष्टिकोण और संयुक्त डेटा विश्लेषण, वैज्ञानिकों को इस बात की पूरी तस्वीर देता है कि सौर ऊर्जा सूर्य की विभिन्न परतों के माध्यम से कैसे चलती है।
चित्र: क्लीन रूम में एसयूआईटी नीतभार का स्थान सहित आदित्य-एल1 अंतरिक्षयान (बाएं)। एसयूआईटी नीतभार का प्रतिबिंब (दाएं)।
चित्र: सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदुओं का चित्रण और आदित्य-एल1 का स्थान (आरेखबद्ध चित्र, पैमाना आधारित नहीं है)
सौर ज्वाला क्या है?
सौर ज्वाला, सौर वायुमंडल से सौर ऊर्जा का अचानक और तीव्र विस्फोट है। यह घटना सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के कारण होती है। सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र बहुत गतिशील प्रकृति का है। कभी-कभी वे अचानक टूट जाते हैं और ऊर्जा का तीव्र विस्फोट करते हैं - एक शक्तिशाली, छोटी स्फुर की तरह। ऊर्जा, प्रकाश/विकिरण और उच्च ऊर्जा आवेशित कणों के रूप में निकलती है।
आदित्य-एल1 सौर ज्वालाओं का अध्ययन कैसे करता है?
सौर ज्वाला के दौरान (साथ ही सौर ज्वाला की घटना से पहले) सूर्य का वह विशेष क्षेत्र जो ज्वाला उत्पन्न करता है, यूवी और एक्स-रे में अधिक चमकीला हो जाता है। एसयूआईटी, सोलेक्स और हीलियोस जैसे आदित्य-L1 उपकरण इन चमक और संबंधित विकिरण स्फुर का अधिक विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं। यह सौर ज्वालाओं से संबंधित विभिन्न घटनाओं की विस्तृत तस्वीर प्रदान करता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य से आने वाली इन हानिकारक विकिरणों को पृथ्वी तक पहुँचने से रोकता है। इसलिए, ऐसा अध्ययन केवल अंतरिक्ष से ही किया जा सकता है।
आदित्य-एल1 पर लगे एसयूआईटी से शोधकर्ताओं ने क्या देखा ?
22 फरवरी 2024 को, आदित्य-एल1 पर मौजूद एसयूआईटी नीतभार नेX6.3 श्रेणी का सौर ज्वाला देखा,जो सौर विस्फोटों की सबसे तीव्र श्रेणियों में से एक है। इस प्रेक्षण की अनूठी विशेषता यह थी कि एसयूआईटी ने NUV तरंगदैर्ध्य परास (200-400 एनएम) — एक तरंगदैर्ध्य रेंज जिसे पहले कभी इतने विस्तार से नहीं देखा गया था (नीचे चित्र देखें), उसमें प्रभासन का पता लगाया। ये प्रेक्षण इस बात की पुष्टि करते हैं कि ज्वाला से निकलने वाली ऊर्जा सूर्य के वायुमंडल की विभिन्न परतों में फैलती है। यह इन विशाल सौर विस्फोटों के लिए जिम्मेदार जटिल भौतिकी में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
इस प्रेक्षण में सबसे रोचक तथ्य यह पता चला है कि निम्न सौर वायुमंडल में पाया गया स्थानीयकृत प्रभासन सीधे सौर वायुमंडल के शिखर पर सौर कोरोना में प्लाज्मा के तापमान में वृद्धि के अनुरूप है।यह ज्वाला ऊर्जा निक्षेपण और संबंधित तापमान विकास के बीच संबंध की पुष्टि करता है। यह खोज सौर ज्वाला की भौतिकी की हमारी समझ को नया रूप देने में मदद करने वाले नए डेटा भी उपलब्ध कराने के साथ-साथ, लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांतों को भी मान्यता प्रदान करती है।
चित्र: विभिन्न एसयूआईटी फिल्टरों से प्राप्त ज्वाला का प्रेक्षण।
शीर्ष चित्र: यह चित्र एसयूआईटी संकीर्ण बैंड NB04 फ़िल्टर, 280 नैनोमीटर (nm) तरंगदैर्ध्य में प्रेक्षणों को दर्शाता है, जो ज्वाला क्षेत्र और सनस्पॉट को दर्शाता है। इस चित्र में दिखाया गया नीला बॉक्स इस प्रेक्षण के रुचि क्षेत्र (RoI) को दर्शाता है। सफ़ेद धारायुक्त बॉक्स से चिह्नित क्षेत्र उस क्षेत्र को दर्शाता है जिसका उपयोग एसयूआईटी नीतभार के अन्य फ़िल्टरों द्वारा बाद के विश्लेषण के लिए किया गया था।
निचला चित्र: यहां दिखाए गए प्रतिबिंबों का आकार विस्तृत विश्लेषण हेतु शीर्ष चित्र में दिखाए गए सफेद बॉक्स क्षेत्र से मेल खाता है। एसयूआईटी ने तीर के निशान द्वारा चिह्नित विभिन्न चैनलों में दो द्युतमान कर्नेल देखे। NB02 और NB05 में इन द्युतमान कर्नेल की उपस्थिति बेहद रोचक है क्योंकि ये दो फिल्टर सौर प्रकाशमंडल का प्रेक्षण करते हैं, जो वर्णमंडल उत्सर्जन मैग्नीशियम II और कैल्शियम II से कम है। इसका यह अर्थ है कि इस ज्वाला के प्रभाव ने वर्णमंडल के निचले परतों को प्रभावित किया। प्रतिबिंबों को एसयूआईटी के विभिन्न संकीर्ण बैंड (NB) फिल्टर में लिया गया है और चित्र में विभिन्न अंकों से दर्शाया गया है। ये तरंगदैर्ध्य 214 एनएम (NB01), 276 एनएम (NB02), 279 एनएम (NB03), 280 एनएम (NB04), 283 एनएम (NB05), 300 एनएम (NB06), 388 एनएम (NB07), 396 एनएम (NB08) के अनुरूप हैं।
हालाँकि वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने अन्य अंतरिक्ष मिशनों से प्राप्त डेटा के साथ सौर ज्वालाओं का अध्ययन किया है, फिर भी इस तरंगदैर्ध्य बैंड में समर्पित अंतरिक्ष दूरबीनों की कमी के कारणNUV बैंड में प्रेक्षण लगभग न के बराबर थे। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, जमीनी दूरबीनें ये मापन नहीं कर सकती हैं क्योंकि UV विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा अवशोषित हो जाता है। आदित्य-L1 काएसयूआईटी उपकरण अब इस कमी को पूरा कर रहा है, जो सौर ज्वाला की गतिशीलता को समझने में इस प्रकार की पहली अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
उपरोक्त निष्कर्ष दुनिया की अग्रणी खगोल भौतिकी पत्रिकाओं में से एक,द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स ( DOI 10.3847/2041-8213/adb0be ) में प्रकाशित हुए हैं।
भविष्य में
आदित्य-एल1 उपकरणों के विज्ञान के लिए पूरी तरह से प्रचालनात्मक होने के साथ, यह मिशन सूर्य और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव के बारे में हमारी समझ में आमूल परिवर्तन लाने के लिए तैयार है। आदित्य-एल1 उपकरणों से प्राप्त प्रारंभिक निष्कर्ष सौर भौतिकी में एक नए युग की शुरुआत मात्र हैं, जिसमें भारत सूर्य के गूढ़तम रहस्यों को उजागर करने में अग्रणी होगा।