18 मार्च, 2025
कल्पना कीजिए कि अगर एक ऐसी प्रणाली हो जो एक घंटे के लीड टाइम में भारत जैसे निचले अक्षांश वाले क्षेत्रों में आयनमंडल की अनिश्चितताओं का सटीक पूर्वानुमान लगा सके, तो विमानन और उपग्रह नौवहन क्षेत्रों में योजना बनाना कितना शक्तिशाली होगा। उष्णकटिबंधीय आयनमंडल की जटिल प्रकृति को देखते हुए, विशेष रूप से चुंबकीय भूमध्यरेखा के पास, यह सपना अब तक साकार नहीं हो पाया था, जब तक कि राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला (एनएआरएल) ने भारत में तीन निम्न अक्षांश स्टेशनों (त्रिवेंद्रम, श्रीहरिकोटा और गादंकी) से दीर्घकालिक आयनोसौंद डेटा का उपयोग करके एक पूर्वानुमान एल्गोरिदम के रूप में समाधान नहीं निकाला।
भूमध्यरेखीय प्लाज्मा बुलबुले (ईपीबी) उत्तर-दक्षिण दिशा में संरेखित ऊर्ध्वाधर पच्चर वेज जैसी कम इलेक्ट्रॉन घनत्व वाली संरचनाएं हैं, जो भूमध्यरेखीय आयनमंडल में स्वाभाविक रूप से होने वाली प्लाज्मा अस्थिरता से बनती हैं। ये उपग्रह-आधारित संचार और नौवहन प्रणालियां, ओवर-द-क्षितिज के ऊपर होराइजन रडार अनुप्रयोगों सहित उच्च आवृत्ति वाले स्थलीय संचार एवं वायुमंडलीय तथा आयनमंडलीय मापदंडों के लिए जीएनएसएस रेडियो गुप्त मापन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। उपग्रह अनुवर्तन, विमानन, खनन, कृषि और निर्माण में लगे कई उद्योग/एजेंसियां ईपीबी से प्रभावित हैं।
ईपीबी सूर्यास्त के बाद रेले-टेलर अस्थिरता के कारण बनते हैं, लेकिन उनका पूर्वानुमान एक चुनौती बनी हुई है। ईपीबी के सृजन के पूर्वानुमान हेतु एनएआरएल में एक नई और मजबूत तकनीक विकसित की गई है। यह तकनीक सूर्यास्त से पहले होने वाली एफ परत के स्थानीयकृत उत्प्रवाह के भौतिकी पर आधारित है (चित्र 1)।
चित्र 1 : शाम का भूमध्यरेखीय आयनमंडल, पीआरई के कारण स्थानीय उत्प्रवाह के साथ-साथ, एफ परत आधार की ऊपर की ओर गति को दर्शाता है। स्थानीयकृत क्षेत्र, जहाँ एफ परत आधार का उत्प्रवाह उनके आस-पास के क्षेत्र से अधिक है, ईपीबी निर्माण के स्थल हैं।
उत्प्रवाह को आयनोसौंद द्वारा प्रक्षित एफ परत (d2h′F/dt2) की आधार ऊंचाई के दूसरे समय व्युत्पत्ति द्वारा लक्षणवर्णन किया गया है। यह एक तरह से, एफ परत आरोहण (dV/dt) के ऊपर की ओर त्वरण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका अस्थिरता पर सीधा असर पड़ता है। यह दर्शाया गया है कि जब त्वरण 0.01 m s-2 की सीमा से अधिक हो जाता है, तो ईपीबी बनता है। तीन भारतीय निम्न अक्षांश स्टेशनों, नामत: त्रिवेंद्रम, श्रीहरिकोटा और गादंकी से विविध सौर प्रवाह और भू-चुंबकीय स्थितियों को कवर करने वाले बड़े डेटासेट का उपयोग करके यह प्रदर्शित किया गया है कि ईपीबी के सृजन का पूर्वानुमान लगभग एक घंटे पहले 99.86% की सटीकता के साथ लगाया जा सकता है,जो कि अभूतपूर्व एवं उल्लेखनीय है (चित्र 2)।
चित्र 2 : शिरोपरि ईपीबी के पूर्वानुमान और घटना के आंकड़े दिखाने वाला चतुर्भुज चार्ट। धनात्मक (ऋणात्मक) एक्स-अक्ष शिरोपरि ईपीबी (कोई शिरोपरि ईपीबी नहीं) के सृजन के लिए पूर्वानुमान को दर्शाता है और धनात्मक (ऋणात्मक) वाई-अक्ष शिरोपरि ईपीबी (ड्रिफ्टेड ईपीबी और कोई ईपीबी नहीं) के प्रेक्षण को दर्शाता है।
जांच से यह निष्कर्ष निकला कि एफ परत के निचले भाग का मानिटरन करने वाले अनुदैर्ध्य रूप से वितरित भू/अंतरिक्ष-आधारित संवेदक व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए व्यापक देशांतर क्षेत्र में ईपीबी सृजन के पूर्वानुमान हेतु एक सक्षम साधन प्रदान कर सकते हैं। यह नई पूर्वानुमान तकनीक उपग्रह-आधारित नौवहन अनुप्रयोगों में काफी सुधार कर सकती है।
अधिक जानकारी के लिए देखें: पात्रा, ए.के., और दास, एस.के. (2025)। भारत से आयनोसौंद प्रक्षेणों का उपयोग करके भूमध्यरेखीय प्लाज्मा बुलबुला सृजन का पूर्वानुमान। एजीयू एडवांस, 6, e2024AV001323https://doi.org/10.1029/2024AV001323
इस नवीन एल्गोरिथ्म से उपग्रह-आधारित नौवहन अनुप्रयोगों में सुधार की संभावना है, जिसमें नौवहन संकेत इलेक्ट्रॉन घनत्व में उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं।