भारत को उच्च दक्षिणी अक्षांशों पर चंद्र सतह की सबसे ऊपरी परत के पहली बार स्व-स्थाने मापन का श्रेय मिला: चंद्रमा पर हिम-जल की उपस्थिति के बारे में नई जानकारी।
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14 मार्च, 2025

भारत को चंद्र सतह के तापमान को पहली बार उच्च दक्षिणी अक्षांश पर स्व-स्थाने दस सेंटीमीटर की गहराई तक मापने का श्रेय जाता है। अब तक अपोलो 15 और 17 मिशनों द्वारा चंद्र के उप सतह से तापमान मापन कुछ मीटर की गहराई पर केंद्रित था, लेकिन सबसे ऊपरी परत के भीतर तापमान का प्रत्यक्ष मापन उपलब्ध नहीं है। हालांकि, चंद्रमा की मिट्टी की निचली परतों तक सौर ताप प्रवाह के प्रसार का आकलन करने के लिए चंद्र सतह (एपि-लेयर) के नीचे पहले कुछ सेंटीमीटर की जांच करने की आवश्यकता होती है, जो कि चंद्रयान 3 के चेस्ट नीतभार द्वारा हासिल की गई अनूठी उपलब्धि है। वह भी पहली बार चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में एक उच्च अक्षांश के पास युक्तिपूर्वक मापा गया और यह चंद्र विज्ञान में एक बड़ी प्रगति के साथ ही भविष्य में उन अक्षांशों पर चंद्र संसाधनों के दोहन को भी दर्शाता है। चंद्र दिवस के एक महत्वपूर्ण भाग के लिए किए गए चंद्रयान-3 से प्राप्त चेस्ट प्रेक्षणों से पता चला कि चंद्र सतह का तापमान भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के विपरीत, उच्च अक्षांशों पर मीटर पैमाने पर महत्वपूर्ण स्थानिक परिवर्तनशीलता को दर्शाता है।

इस खोज के वैज्ञानिक महत्व को विस्तार से समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि केवल अपोलो 15 और 17 मिशनों ने ही चंद्रमा के भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के लिए स्व-स्थाने डेटा प्रदान किया है, जबकि वैश्विक सतह के तापमान का मानचित्रण सुदूर संवेदन के माध्यम से किया गया है। अब तक चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों से कोई स्व-स्थाने मापन उपलब्ध नहीं था, जब तक कि चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर चंद्र के सतह के तापभौतिक प्रयोग (ChaSTE) ने उच्च अक्षांश दक्षिण ध्रुवीय अवतरण स्थल पर चंद्र सतह के ऊपरी 10 सेमी के भीतर तापमान प्रोफ़ाइल और तापभौतिक गुणों की जांच नहीं की थी।

विक्रम लैंडर द्वारा चंद्रमा के शिव शक्ति बिंदु पर सहज अवतरण करने के बाद, चेस्ट अन्वेषिका को तैनात किया गया और मिशन की पूरी अवधि के दौरान मापने के लिए सफलतापूर्वक चांद की मिट्टी में प्रवेश कराया गया। चेस्ट स्व-स्थाने मापन, चंद्र दिवस के एक महत्वपूर्ण हिस्से (चंद्रमा पर स्थानीय समयानुसार सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक) यानी लगभग 10 पृथ्वी दिवस (यानी 24 अगस्त से 2 सितंबर 2023 तक) के लिए लगभग एक सेकंड के अंतराल पर किए गए।

भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद; अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला-विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (एसपीएल-वीएसएससी) और इसरो के वैज्ञानिकों की एक टीम ने 69.37 डिग्री दक्षिण में चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के पास चंद्र सतह के अंदर 10 सेमी की गहराई तक स्व-स्थाने तापमानों की रिपोर्ट दी है। इन तापमानों को अलग-अलग दूरी पर एक अन्वेषिका की लंबाई के साथ लगाए गए दस तापमान संवेदकों से मापा गया था। निम्नलिखित चित्र में चेस्ट तापीय अन्वेषिका और इसके साथ लगाए गए तापमान संवेदक के स्थान दिखाए गए हैं।

India Bags the Credit for First-Ever In-Situ Measurement of the Topmost Fluffy Layer of the Moon’s Surface at Southern Higher Latitudes

अन्वेषिका की लंबाई के साथ 10 तापमान संवेदक और उनके स्थापन को दर्शाता विधिवत चित्रण

शिव शक्ति अवतरण स्थल पर सतह का अधिकतम तापमान 355K (± 0.5 K) मापा गया, जो कि पूर्व प्रेक्षणों द्वारा अनुमानित ~330 K (±3K) से अपेक्षाकृत अधिक है। यह अप्रत्याशित उच्च तापमान ~6o के ढलान के साथ सूर्य की ओर (भूमध्य रेखा की ओर) देखने वाली सतह पर चेस्ट के प्रवेश के कारण है। पीआरएल द्वारा विकसित 3-डी तापभौतिकी मॉडल का उपयोग करके अनुमानित तापमान और चंद्रयान-3 की अवतरण स्थितियों के लिए उपयुक्त रूप से प्रयुक्त तापमान चेस्ट स्व-स्थाने मापन के अनुरूप है। चेस्ट के स्थान से लगभग एक मीटर दूर एक स्वतंत्र संवेदक का उपयोग करके एक सपाट सतह से मापा गया चंद्र सतह का तापमान ~332K (±1K) पाया गया, जो कि कक्षीय यान आधारित सुदूर संवेदन प्रेक्षण (~330 K) के अनुरूप है। इसलिए, चेस्ट प्रेक्षणों से संकेत मिलता है कि चंद्र सतह का तापमान भूमध्यरेखीय क्षेत्रों के विपरीत, उच्च अक्षांशों पर मीटर पैमाने पर महत्वपूर्ण स्थानिक परिवर्तनशीलता दर्शाता है। जैसे-जैसे हम ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, इनके प्रभाव भी बढ़ते जाते हैं, जो भविष्य में अन्वेषण हेतु विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहलू है।

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चंद्र सतह पर तैनात चेस्ट अन्वेषिका के साथ प्रज्ञान रोवर द्वारा ली गई विक्रम लैंडर की तस्वीर

चंद्रमा की सतह का तापीय वातावरण सौरमंडल के किसी भी ग्रहीय पिंड के तीव्रतम में से एक है। चंद्रमा की सतह के निकट तापमान और तापभौतिकी ऐसे आवश्यक प्राचल हैं जो न केवल हिम-जल/वाष्पशील पदार्थों की स्थिरता को निर्धारित करते हैं, बल्कि चंद्र भूविज्ञान और भूभौतिकी, संसाधन अन्वेषण, मिशन सुरक्षा और चंद्रमा पर स्थायी दीर्घकालिक आवास स्थापित करने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

चेस्ट मापन पर आधारित 3-डी मॉडल गणनाओं का उपयोग करते हुए, क्षेत्र के भीतर हिम-जल स्थिरता की संभावना का आकलन करने के लिए स्थानीय ढलान और अपेक्षित सतही शिखर तापमान के बीच संबंध प्राप्त किया गया। इन अनुरूपणों का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि ध्रुव की ओर 14 डिग्री से अधिक स्थानीय ढलान वाले उच्च अक्षांश स्थल कुछ 10 सेंटीमीटर की उथली गहराई पर हिम-जल संचय करने के लिए ध्रुवीय स्थलों के समान वातावरण प्रदान कर सकते हैं। ये स्थान भविष्य के चंद्र अन्वेषण और निवास के लिए आशाजनक स्थल हो सकते हैं। ऐसे स्थल न केवल वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प हैं, बल्कि चंद्रमा के ध्रुवों के करीब के क्षेत्रों की तुलना में अन्वेषण के लिए कम तकनीकी चुनौतियाँ भी पेश करते हैं।

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एक व्यापक नक्शा चेस्ट प्रवेश बिंदु पर स्व-स्थाने प्रेक्षण और मॉडल से प्राप्त दैनिक तापमान को दर्शाता है। ठोस नीला वक्र चेस्ट प्रेक्षण (6o की स्थानीय ढलान के लिए) दिखाता है और ठोस लाल आरेख चेस्ट प्रेक्षणों का उपयोग करके मॉडल द्वारा परिकलित चंद्र दिन-रात के तापमान को दर्शाता है। काला वक्र और हरा बिंदु क्रमशः प्रेक्षित और मॉडल किए गए तापमान को दर्शाते हैं, जिनका सामना चेस्ट द्वारा किया गया होता यदि यह समतल स्थान पर प्रवेश करता। अवतरण स्थल के पास विभिन्न अभिविन्यासों के लिए मॉडल-व्युत्पन्न दिन-रात के तापमान अन्य आरेखों में दिखाए गए हैं। हरा बैंड और नीली रेखा क्रमशः हिम-जल प्रवास और शीत पाश के लिए आदर्श तापमान स्थितियों को दर्शाती है। यह चित्र से देखा जा सकता है कि कुछ अभिविन्यासों (यानी >14o का ध्रुव ढलान) के लिए तापमान हिम-जल संचय और भंडारण के लिए अनुकूल हैं।

चेस्ट प्रयोग को अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला (एसपीएल) और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद द्वारा संयुक्त रूप से विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम और अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद की विभिन्न संस्थाओं की सहायता से विकसित किया गया है।

इस परिणाम का वैज्ञानिक और तकनीकी दोनों महत्व है। यह जानना कि चंद्रमा की मिट्टी की ऊपरी परत के कुछ शुरुआती सेन्टमीटर के अंदर से ऊष्मा कैसे फैलती है, सतह की ऊष्मा के प्रभाव की गहराई को समझने के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण है। चूँकि चंद्रमा पर हवा नहीं है, इसलिए यह परत बहुत गर्म और बहुत ठंडी हो जाती है, जिससे इसका व्यवहार बदल जाता है। यह समझकर कि सतह की परत कितनी अच्छी तरह से ऊष्मा का संचालन करती है और यह कितनी ऊष्मा धारण कर सकती है, जैसा कि चेस्ट द्वारा किया गया है, वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि ऊष्मा कैसे घूमती है, सतह के नीचे के तापमान की भविष्यवाणी कर सकते हैं और ये देख सकते हैं कि सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के साथ कैसे अन्योन्यक्रिया करता है। इससे इंजीनियरों को सौम्य तापीय वातावरण वाले उपसतही स्थानों को खोजने और भविष्य की यात्राओं की योजना बनाने और चंद्रमा पर रहने के लिए सुरक्षित स्थानों को डिज़ाइन करने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह जानना कि मिट्टी ऊष्मा पर कैसे प्रतिक्रिया करती है, हमें बताती है कि उल्कापिंडों और सौर पवन ने समय के साथ चंद्रमा की सतह को कैसे बदल दिया, जिससे हमें इसके अनूठे वातावरण का बेहतर अंदाजा मिलता है। ये माप सुदूर संवेदन आधारित वैश्विक तापमान मापनों के भी पूरक और संपूरक होंगे, जबकि सूक्ष्म स्व-स्थाने जांच स्थानीय तापमान चिह्नक से चंद्रमा की उपसतह के भीतर किसी भी अंतर्निहित हिम-जल की तलाश करने में मदद करती है। यह महत्वपूर्ण परिणाम सौर ताप बल, चंद्रमा की सतह द्वारा ऊष्मा के पुनः विकिरण और ऊष्मा के अवशोषण पर विचार करके चंद्रमा पर ऊर्जा संतुलन के बारे में हमारी समझ को परिष्कृत करने में भी मदद करेगा। यह एक और महत्वपूर्ण पहलू है जो भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए वैज्ञानिक मापन की योजना बनाने में मदद करता है।

ये परिणाम 6 मार्च 2025 को प्रकाशित नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में बताए गए हैं। लेख का विवरण नीचे दिया गया है

“चन्द्रयान-3 पर चेस्ट प्रयोग द्वारा चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के निकट उच्च सतही तापमान मापा गया”
DOI: https://doi.org/10.1038/s43247-025-02114-6
Journal: Communications Earth & Environment
Weblink: nature.com/articles/s43247-025-02114-6