24 अप्रैल, 2025
16 अप्रैल, 2025 को, इसरो ने आगामी चंद्रयान-4 मिशन (वर्ष 2027-2028 में प्रमोचित हेतु निर्धारित) के संदर्भ में चंद्र नमूना विज्ञान के संभावित पहलुओं पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया, जिसका उद्देश्य चंद्र नमूनों को वापस पृथ्वी पर लाना है। इस राष्ट्रीय सम्मेलन में उल्कापिंड के नमूनों, स्थलीय अनुरूपों, चंद्र मिट्टी के अनुकारों के विश्लेषण में रत चंद्र विज्ञान समुदाय के साथ-साथ उन वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जो वापस लाए गए नमूनों के साथ जमीनी तौर पर सच्चे प्रयोगों सहित चंद्र सतह के सुदूर संवेदन प्रेक्षणों को सीमित करने के इच्छुक हैं। प्रतिभागियों में लगभग 50 वैज्ञानिक शामिल थे; उनमें से लगभग 50% देश भर के 12 शोध और शैक्षणिक संस्थानों (अंतरिक्ष विभाग से बाहर) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिसमें निजी शैक्षणिक संस्थान भी शामिल थे।
उद्घाटन भाषण के दौरान, इसरो के वैज्ञानिक सचिव, श्री एम. गणेश पिल्लई ने भारत के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के समग्र दिशा-निर्देशों में चंद्रयान-4 मिशन को एक प्रमुख उपलब्धि के रूप में इस राष्ट्रीय सम्मेलन के महत्व पर बल दिया, जो अंततः वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर भारत के प्रथम मानव-अंतरिक्ष उड़ान मिशन को अक्षम बनाएगा। इसरो मुख्यालय के विज्ञान कार्यक्रम कार्यालय के निदेशक, डॉ. तीर्थ प्रतिम दास ने राष्ट्रीय सम्मेलन के संदर्भ और विज्ञान-संचालित, सुनियोजित चंद्र नमूना-वापसी मिशन के लिए भारतीय चंद्र शोधकर्ताओं की भूमिकाओं के बारे में विस्तार-पूर्वक बताया। अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) के निदेशक, डॉ. अनिल भारद्वाज ने वैज्ञानिक समुदाय को चंद्रमा के साथ-साथ उल्कापिंड के नमूनों के विश्लेषण के लिए पीआरएल की विरासत से अवगत कराया। यू आर राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी), इसरो की टीमों ने चंद्र नमूना संरक्षण और विश्लेषण सुविधाओं के साथ-साथ चंद्रयान-4 मिशन की योजनाओं पर विचार-विमर्श किया। कई राष्ट्रीय संस्थानों और शिक्षा-जगत के वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों द्वारा किए गए विस्तृत विचार-विमर्श में चंद्र विज्ञान में लंबित समस्याओं के पहलुओं, संभावित चंद्र अवतरण स्थलों को वैज्ञानिक रूप से पुरस्कृत करने सहित वापस लाए गए नमूनों के उन्नत विश्लेषण पर चर्चा की गई।