जनवरी 13, 2025
डॉ. वी. नारायणन, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक (शीर्ष स्तर) ने अपराह्न 13 जनवरी, 2025 को सचिव, अंतरिक्ष विभाग, अध्यक्ष, अंतरिक्ष आयोग और अध्यक्ष, इसरो का पदभार ग्रहण किया। इससे पहले, उन्होंने द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) के निदेशक के रूप में कार्य किया, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख केंद्रों में से एक है, जिसका मुख्यालय तिरुवनंतपुरम के वलियामाला में और एक इकाई बेंगलूरु में है। निदेशक के रूप में, उन्होंने एलपीएससी को तकनीकी-प्रबंधकीय नेतृत्व प्रदान किया और यह केंद्र प्रमोचन वाहनों के लिए द्रव, अर्ध-क्रायोजेनिक और क्रायोजेनिक नोदन चरणों के विकास, उपग्रहों के लिए रासायनिक और विद्युत नोदन प्रणाली, प्रमोचन वाहनों के लिए नियंत्रण प्रणाली और नोदन प्रणाली के स्वास्थ्य मानिटरन के लिए ट्रांसड्यूसर विकास जैसे कार्यों में संलग्न है।
महेंद्रगिरि (तमिलनाडु) में स्थित इसरो नोदन कॉम्प्लेक्स (आईपीआरसी) इसरो की एक इकाई है जो द्रव नोदन प्रणालियों के संयोजन, एकीकरण और परीक्षण के लिए जिम्मेदार है। एलपीएससी-आईपीआरसी समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में, वे गतिविधियों की समीक्षा और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार थे।
सभी प्रमोचन यान परियोजनाओं और कार्यक्रमों में निर्णय लेने वाली निकाय, परियोजना प्रबंधन परिषद-अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली (पीएमसी-एसटीएस) के अध्यक्ष के रूप में डॉ. वी नारायणन ने इसरो के प्रमोचन यान के परिचालन और विकास संबंधी गतिविधियों का मार्गदर्शन किया। वे गगनयान कार्यक्रम के राष्ट्रीय स्तर के मानव अनुकूलित प्रमाणन बोर्ड (एचआरसीबी) के अध्यक्ष भी थे।
डॉ. वी नारायणन, जो एक रॉकेट और अंतरिक्ष यान नोदन विशेषज्ञ हैं उन्होंने वर्ष 1984 में इसरो की सेवा प्रारंभ की और जनवरी, 2018 में द्रव नोदन प्रणाली केंद्र के निदेशक बनने से पहले विभिन्न पदों पर कार्य किया।
एक साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ. वी. नारायणन ने क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एम.टेक और पीएच.डी. की। आईआईटी, खड़गपुर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम.टेक में प्रथम रैंक हासिल करने के लिए उन्हें रजत पदक से सम्मानित किया गया। उन्हें 2018 में प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार और आईआईटी, खड़गपुर द्वारा लाइफ फेलोशिप अवार्ड 2023 से भी सम्मानित किया गया है।
1984 में इसरो में शामिल होने से पहले उन्होंने अपने करियर की शुरूआत में डेढ़ साल टीआई डायमंड चेन लिमिटेड, मद्रास रबड़ फैक्ट्री, बीएचईएल, त्रिची और बीएचईएल, रानीपेट में काम किया था। इसरो में, उन्होंने द्रव नोदन प्रणाली केंद्र के निदेशक के रूप में 7 साल के अतिरिक्त 40 साल की मेधावी सेवा पूरी की है। उनकी कड़ी मेहनत और योगदान के कारण, उन्हें उच्चतम स्तर के विशिष्ट वैज्ञानिक (शीर्ष स्तर) पर पदोन्नत किया गया। उनके नेतृत्व में, एलपीएससी ने इसरो के प्रमोचन यानों और उपग्रहों के लिए 226 द्रव नोदन प्रणालियां और नियंत्रण विद्युत् संयंत्र प्रदान किए।
जब भारत को जीएसएलवी मार्क-ll यान के लिए क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी से वंचित कर दिया गया, तो उन्होंने इंजन प्रणालियों का डिजाइन किया, आवश्यक सॉफ्टवेयर उपकरण विकसित किए, आवश्यक बुनियादी ढांचे / परीक्षण सुविधाओं, परीक्षण और योग्यता की स्थापना और क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (सीयूएस) के विकास को पूरा करने और इसे चालू करने में अपना योगदान दिया।
एलवीएम3 यान के C25 क्रायोजेनिक परियोजना के परियोजना निदेशक के रूप में, उन्होंने 20-टन थ्रस्ट इंजन द्वारा संचालित C25 क्रायोजेनिक स्टेज को सफलतापूर्वक विकसित करने में टीम का नेतृत्व किया और अपने पहले प्रयास में एलवीएम3 यान के सफल प्रमोचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा क्रायोजेनिक स्टेज को प्रचालनात्मक बनाया। उनके एम.टेक की थीसिस और पीएच.डी. संबंधी शोध कार्य ने क्रायोजेनिक नोदन प्रणालियों के विकास में योगदान दिया।
क्रायोजेनिक नोदन प्रणालियों के विकास ने भारत को यह क्षमता रखने वाले छह देशों में से एक बना दिया और प्रमोचन यान में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित की।
एलवीएम3-एम1/चंद्रयान-2 और एलवीएम3/चंद्रयान-3 मिशन के लिए उन्होंने टीमों का नेतृत्व किया और एलवीएम3 यान और नोदन प्रणालियों के लिए एल110 द्रव चरण तथा सी25 क्रायोजेनिक चरण का विकास और वितरण किया, जो अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से चंद्रमा की कक्षा में ले गए और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग के लिए विक्रम लैंडर की उपरोधनीय नोदन प्रणाली का उपयोग किया गया। वे राष्ट्रीय स्तर की विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष थे जिसने चंद्रयान-2 के औंधेमुंह अवतरण के कारण बताए तथा आवश्यक सुधारों की सिफारिश की जिसने चंद्रयान-3 की सफलता में योगदान दिया और भारत को चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर अवतरण करनेवाला पहला देश बना दिया।
पीएसएलवी सी57/आदित्य एल1 मिशन के लिए उन्होंने प्रमोचन यान के दूसरे और चौथे चरण तथा नियंत्री विद्युत् संयंत्रों का निर्माण करनेवाली और पृथ्वी की कक्षा से सूर्य के एल1 बिंदु तक अंतरिक्ष यान की यात्रा तथा इसे प्रभामंडल कक्षा में बनाए रखने के लिए उपयोग की जाने वाली नोदन प्रणाली की प्राप्ति करनेवाली टीमों का नेतृत्व किया। मिशन तैयारी समीक्षा के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने मिशन की समीक्षा की और सुनिश्चित किया कि भारत सूर्य का अध्ययन करने के लिए एक सफल उपग्रह भेजनेवाला वाला चौथा देश बन जाए।
मानव अंतरिक्ष उड़ान गगनयान कार्यक्रम के लिए उन्होंने एलवीएम3 यान की मानव अनुकूलन, मानव अनुकूलित एल110 और सी32 क्रायोजेनिक चरणों के विकास, पर्यावरण नियंत्रण और जीवन समर्थन प्रणाली, सेवा और कर्मीदल मॉड्यूल नोदन प्रणालियों तथा कर्मीदल निकासी प्रणाली प्रदर्शन के लिए परीक्षण यान में योगदान दिया। गगनयान प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए विभिन्न प्रणालियों की प्रमाणन प्रक्रिया में योगदान दिया।
उनके नेतृत्व में, एक नए क्रायोजेनिक चरण (सी32) का विकास सफलतापूर्वक पूरा किया गया और पहले गगनयान मिशन के लिए चरण प्रदान किया गया। वे एलवीएम3 नीतभार में सुधार के लिए 200-टन प्रणोदवाले एलओएक्स-केरोसीन अर्ध-क्रायोजेनिक रॉकेट सिस्टम, भविष्य के प्रमोचन यानों के लिए 110टन प्रणोदवाले एलओएक्स-मीथेन इंजन, अंतरिक्षयानों के लिए विद्युत् और ग्रीन नोदन प्रणाली जैसी विकास गतिविधियों का भी नेतृत्व कर रहे थे।
अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली की परियोजना प्रबंधन परिषद के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने परिचालन और नए प्रमोचन यानों के लिए टीमों का मार्गदर्शन किया। उन पर वीनस ऑर्बिटर, चंद्रयान-4, गगनयान, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) और हाल ही में कैबिनेट द्वारा स्वीकृत अगली पीढ़ी के प्रमोचन यान कार्यक्रम के लिए प्रोपल्शन सिस्टम की भी जिम्मेदारी थी।
डॉ. नारायणन को 26 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्हें एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) से स्वर्ण पदक, रॉकेट और संबंधित प्रौद्योगिकियों के लिए एएसआई पुरस्कार, हाई एनर्जी मैटेरियल्स सोसाइटी ऑफ इंडिया (एचईएमएसआई) से टीम पुरस्कार, उत्कृष्ट प्रदर्शन पुरस्कार और इसरो के टीम उत्कृष्टता पुरस्कार, एनडीआरएफ, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, भारत से राष्ट्रीय डिजाइन पुरस्कार और एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया से राष्ट्रीय वैमानिकी पुरस्कार, सत्यबामा विश्वविद्यालय, चेन्नई से डॉक्टर ऑफ साइंस की मानद उपाधि, आईआईटी, खड़गपुर द्वारा प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार-2018, एपीजे अब्दुल कलाम पुरस्कार 2023, चंद्रयान-3 के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पुरस्कार, 2023 में आईआईटी-खड़गपुर का लाइफ फेलोशिप पुरस्कार और इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एस्ट्रोनॉटिक्स द्वारा चंद्रयान-3 के लिए 2024 में टीम उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
डॉ. नारायणन इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन (आईएएफ) की अंतरिक्ष नोदन समिति के सदस्य, इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ एस्ट्रोनॉटिक्स (आईएए) के सदस्य, इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के फेलो, इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के फेलो, भारतीय क्रायोजेनिक काउंसिल के फेलो, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के फेलो, एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के फेलो, इंडियन सिस्टम्स सोसाइटी ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने 6 वर्षों तक आईएनएई के गवर्निंग काउंसिल और विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यावसायिक निकायों, आईआईएसटी बोर्ड और गवर्निंग काउंसिल के सदस्य के रूप में कार्य किया है। डॉ. नारायणन ने 1200 आंतरिक इसरो रिपोर्ट, 50 जर्नल और कॉन्फ्रेंस पेपर तथा कुछ पुस्तक अध्याय सहित बड़ी संख्या में तकनीकी पेपर प्रकाशित किए हैं।