मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशनों पर भारत की मंशा - स्पष्टता
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19 अप्रैल 2024

भारत का इरादा मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशनों (डीएफएसएम) का है। इस पहल की घोषणा 16 अप्रैल, 2024 को बेंगलूरु में आयोजित अंतर–एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (आईएडीसी) की 42वीं वार्षिक बैठक के उद्घाटन सत्र के दौरान श्री एस. सोमनाथ, अध्यक्ष, इसरो/सचिव, अंतरिक्ष विभाग ने की थी। इस पहल का विवरण इस नोट में दिया गया है।

"इस पहल का उद्देश्य 2030 तक सभी भारतीय सरकारी और गैर-सरकारी अंतरिक्ष हितधारकों द्वारा मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशनों की प्राप्ति है।" भारत बाहरी अंतरिक्ष की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अन्य सभी देशों के अंतरिक्ष हितधारकों को भी इस पहल का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

इस पहल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अन्य देशों के अंतरिक्ष हितधारकों के ध्यान में लाया जाएगा ताकि उन्हें इस पहल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। अंतरिक्ष विभाग महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों के सावधानीपूर्वक डिजाइन और कार्यान्वयन के माध्यम से 2030 तक सभी भारतीय सरकारी और गैर-सरकारी अंतरिक्ष हितधारकों द्वारा शून्य मलबे (मलबा मुक्त अंतरिक्ष मिशन - डीएफएसएम) के साथ अंतरिक्ष मिशन सुनिश्चित करेगा।

इन दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए निम्नलिखित आवश्यक कदम उठाना शामिल है-

  1. उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों के प्रचालन कालावधि के साथ-साथ मिशन के बाद के निपटान चरण के दौरान मलबे के उत्पादन से बचना।
  2. विफलता के आवश्यक अध्ययनों, अनावश्यक प्रणालियों और उच्च विश्वसनीयता के साथ मिशन डिजाइन के माध्यम से उपग्रहों और प्रमोचन यानों की कक्षा में टक्कर और टूटनन से बचना।
  3. लंबे समय तक रहने वाले मलबे का साभिप्राय विसर्जन करना।
  4. 99% से अधिक सफलता की संभावना के साथ समाप्त हुए कक्षीय चरणों और उपग्रहों के मिशन-पश्चात निपटान (पीएमडी) का अनुपालन करें। प्रचालन कालावधि के अंत में रॉकेट अवयवों और अंतरिक्ष यान के लिए 5 वर्ष से कम वाली शेष कक्षीय कालावधि के साथ या तो नियंत्रित पुन: प्रवेश अथवा निचली कक्षा में इनका जाना सुनिश्चित करें।

यह इरादा इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि 2030 तक सभी उपग्रह और प्रक्षेपण यान मिशनों की योजना निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुए बनाई और संचालित की जाएगी :

  1. मानव अंतरिक्ष उड़ान सुरक्षा के लिए विशेष विचार - अंतरिक्ष मिशनों द्वारा इस बैंड में न्यूनतम कक्षीय स्थानांतरण से बचते हुए मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए कक्षीय बैंड के रूप में 400 किमी +/- 30 किमी बैंड पर विचार करना।
  2. मिशन चरणों के दौरान सभी उपग्रहों की अनुवर्तन योग्यता, पहचान क्षमता और परिचालन क्षमता सुनिश्चित करना।
  3. स्वस्थ प्रणाली, सुरक्षा और मिशन के बाद के निपटान के लिए प्रणाली की तैयारी पर गंभीर विचार के बाद ही सभी अंतरिक्ष यान मिशन के विस्तार की सिफारिश करना।
  4. सुरक्षित और दीर्घकालिक संचालन के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर समन्वय और डेटा साझाकरण।

यह इरादा अंतरिक्ष पिंड के अनुवर्तन और निगरानी के लिए आवश्यक क्षमता निर्माण सुनिश्चित करेगा और बाह्य अंतरिक्ष की गतिविधियों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए नवीन तकनीकों पर अंतरिक्ष मलबे के अनुसंधान के ठोस प्रयासों में भी प्रगति करेगा।

कक्षीय बैंडो में टकराव के खतरे, मिशन पश्चात निपटान हेतु ईंधन बजटिंग, आवश्यक नियंत्रित पुनः प्रवेश अथवा विकक्षायन सहित मिशन प्रक्षेपपथ योजना और विश्वसनीयता संबंधी पहलुओं पर विचार करते हुए कक्षीय स्लॉटों के चयन द्वारा प्रमोचन यान तथा अंतरिक्षयान मिशनों के लिए मिशन आयोजन और डिजाइन स्तर पर प्रयासों के माध्यम से इस डीएफएसएम पहल का कार्यान्वयन वर्ष 2025 के प्रारंभ में शुरू हो जाएगा। डीएफएसएम के कार्यान्वयन पर वार्षिक प्रगति का मूल्यांकन किया जाएगा, सुरक्षित और संस्थिर अंतरिक्ष संचालन प्रबंधन के लिए इसरो प्रणाली (आईएस4ओएम) अंतरिक्ष विभाग की अन्य संस्थाओं के सहयोग से डीएफएसएम को लागू करने में नोडल बिंदु होगी।

यह पहल दीर्घकालिक स्थिरता के लिए वैश्विक प्रयासों का समर्थन करती है और भारत को उन अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक के रूप में स्थापित करती है जो बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों की सुरक्षा, संरक्षा और संस्थिरता को सर्वाधिक महत्व देती है।

इस पहल का दीर्घकालिक लक्ष्य "सुरक्षित, संरक्षित और संस्थिर अंतरिक्ष के लिए एक साथ जुड़ें, भविष्य की पीढ़ियों के लिए मानव जाति की साझा विरासत को संरक्षित करें, अंतरिक्ष - सभी के लिए और सभी पीढ़ियों के लिए" के मूल विषय से मेल खाता है।

India’s Intent on Debris-Free Space Missions