09 दिसंबर, 2025
23 अगस्त, 2023 से 3 सितंबर, 2023 तक चंद्रयान-3 लैंडर से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से दक्षिणी उच्च अक्षांशों पर चंद्रमा की सतह के निकट प्लाज्मा वातावरण पर महत्वपूर्ण और अभूतपूर्व परिणाम सामने आए हैं, जिससे पता चलता है कि दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में चंद्रमा की सतह के निकट विद्युत वातावरण पहले से अधिक सक्रिय है।
भौतिकी में, प्लाज़्मा को अक्सर पदार्थ की चौथी अवस्था कहा जाता है, जिसमें आयनों और मुक्त इलेक्ट्रॉनों सहित आवेशित कणों का मिश्रण होता है। यद्यपि प्लाज़्मा समग्र रूप से विद्युतीय दृष्टि से तटस्थ रहता है, फिर भी, यह अत्यधिक सुचालक होता है और विद्युतचुम्बकीय क्षेत्रों के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया करता है। चंद्रमा का क्षीण प्लाज़्मा वातावरण या चंद्र आयनमंडल, कई प्रमुख प्रक्रियाओं द्वारा नियंत्रित होता है। सौर पवन, जो सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से उत्सर्जित आवेशित कणों (मुख्यतः इलेक्ट्रॉन, हाइड्रोजन और हीलियम आयन) की एक सतत धारा है, लगातार चंद्रमा की सतह पर टकराती रहती है। इसके साथ ही, प्रकाश-विद्युत प्रभाव, जिसमें सूर्य से आने वाले उच्च-ऊर्जा वाले फोटोन चन्द्र सतह और विरल वायुमंडल में परमाणुओं के बाहरी इलेक्ट्रॉन निकाल देते हैं, जिससे आयनीकरण होता है, प्लाज्मा निर्माण की मुख्य प्रक्रिया है। चंद्रमा के चुंबकीय क्षेत्र (विशेष रूप से मैग्नेटोटेल) से उत्पन्न आवेशित कणों के निक्षेपण से भी चंद्र प्लाज़्मा प्रभावित होता है, जब चंद्रमा उस क्षेत्र से गुजरता है (आमतौर पर 28 दिनों की अवधि में 3-5 दिन), जिसके परिणामस्वरूप सतह के निकट एक निरंतर परिवर्तनशील और गतिशील विद्युत वातावरण बनता है।
इस संदर्भ में, चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर पर लगे चंद्र आबद्ध अतिसंवेदनशील आयनमंडल और वायुमंडल का विकिरण विश्लेषण – लैंगमुइर प्रोब (रम्भा-एलपी) उपकरण द्वारा प्राप्त परिणाम इतनी कम तुंगता पर चंद्र प्लाज्मा के प्रथम प्रत्यक्ष या "स्व-स्थाने" माप को दर्शाते हैं। प्रमुख निष्कर्षों में यह तथ्य शामिल है कि चंद्रयान-3 के अवतरण स्थल, जिसे शिव शक्ति बिंदु (69.3° दक्षिण, 32.3° पूर्व) नाम दिया गया है, उसके निकट इलेक्ट्रॉन घनत्व 380 से 600 इलेक्ट्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर के बीच मापा गया। यह उच्च ऊँचाई पर लिए गए प्रेक्षणों से प्राप्त अनुमानों से काफी अधिक है, जो मुख्य रूप से चंद्रमा के क्षीण वायुमंडल से गुजरने वाले उपग्रहों से विद्युत चुम्बकीय संकेतों के चरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रेक्षण पर आधारित होते हैं, जिसे रेडियो अपगूहन तकनीक के रूप में जाना जाता है।
इसके अलावा यह भी पाया गया है कि चंद्रमा की सतह के निकट के इलेक्ट्रॉनों में असाधारण रूप से उच्च ऊर्जा होती है, जिसके समतुल्य तापमान (जिसे गतिज तापमान कहा जाता है) 3,000 और 8,000 केल्विन के बीच होता है।
इस अध्ययन से पता चला है कि चंद्रमा का प्लाज्मा स्थिर नहीं है, बल्कि पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षीय स्थिति के आधार पर दो अलग-अलग कारकों द्वारा लगातार परिवर्तित होता रहता है। जब चंद्रमा सूर्य की ओर (चंद्रमा का दिन का समय) और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से बाहर होता है, तो सतह के निकट प्लाज्मा में होने वाले परिवर्तन सौर पवन से आने वाले कणों द्वारा चंद्रमा पर मौजूद विरल तटस्थ गैस (बाह्यमंडल) के साथ परस्पर क्रिया करने के कारण होते हैं। इसके विपरीत, जब चंद्रमा भू-चुंबकीय पुच्छ से गुजरता है, तो प्लाज्मा में परिवर्तन पृथ्वी की लंबी चुंबकीय पुच्छ (सूर्य के विपरीत दिशा की ओर) के शुण्डित क्षेत्र से प्रवाहित होने वाले आवेशित कणों के कारण होते हैं, जिसे भू-चुंबकीय पुच्छ के नाम से जाना जाता है।
इसके अलावा, आंतरिक रूप से विकसित चंद्र आयनमंडल मॉडल (एलआईएम) से पता चलता है कि मौलिक आयनों के अलावा, आणविक आयन (संभवतः CO2, H2O जैसी गैसों से उत्पन्न) भी चंद्र सतह के निकट इस विद्युत आवेशित परत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रम्भा-एलपी प्रयोग के ये परिणाम चंद्र अन्वेषण के अगले चरण के लिए आवश्यक आधारभूत तथ्य प्रदान करते हैं।
रम्भा-एलपी प्रयोग को अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला (एसपीएल), विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया था।
संदर्भ:“इन-सीटू आयनोस्फेरिक आब्ज़र्वैशन नियर लुनर साउथ पोल बाइ दी लैंगमुइर प्रोब ऑन चंद्रयान-3 लैंडर”, जी. मंजू एवं अन्य, मंथली नोटीसैज ऑफ़ दी रॉयल ऐस्ट्रनामिकल सोसाइटी, 542, 2647 – 2656 (2025);
DOI: https://doi.org/10.1093/mnras/staf1276