भारत का आदित्य-एल1 ऐतिहासिक सौर तूफान अध्ययन के वैश्विक प्रयास से जुड़ा
होम / भारत का आदित्य-एल1 ऐतिहासिक सौर तूफान अध्ययन के वैश्विक प्रयास से जुड़ा

09 दिसंबर, 2025

मई 2024 में, हमारे ग्रह ने पिछले दो दशकों में सबसे प्रबल सौर तूफ़ान का सामना किया, जिसने पृथ्वी के पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया - जिसे अब "गैनन तूफ़ान" कहा जाता है। यह सौर तूफ़ान सूर्य पर होने वाले विशाल विस्फोटों की एक शृंखला से बनता है, जिन्हें प्रभामंडलीय द्रव्यमान उत्सर्जन (सीएमई) कहा जाता है। सीएमई, सूर्य द्वारा अंतरिक्ष में छोड़े गए गर्म गैस और चुंबकीय ऊर्जा के एक विशाल बुलबुले जैसा होता है। जब ये बुलबुले पृथ्वी से टकराते हैं, तो ये हमारे ग्रह के चुंबकीय कवच को हिला सकते हैं और उपग्रहों, संचार प्रणालियों, जीपीएस और यहाँ तक कि विद्युत ग्रिड के लिए भी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स (DOI:10.3847/2041-8213/adfe60, सितंबर 2025) में एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रकाशित किया है, जो संभवतः यह बताता है कि इस तूफान ने इतना असामान्य तरीके से व्यवहार क्यों किया।

India’s Aditya-L1 Joins Global Effort in Landmark Solar Storm Study

चित्र: सूर्य से उत्सर्जित गर्म गैस के बुलबुलों और चुंबकीय क्षेत्र का कलात्मक चित्रण, जिसे प्रभामंडलीय द्रव्यमान उत्सर्जन कहा जाता है। ये दो लगातार सीएमई अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में टकराए, और अंतर्निहित चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएँ टूटकर फिर से जुड़ गईं, जैसा कि आदित्य-एल1 और नासा तथा एनओएए के छह अन्य अंतरिक्ष यानों द्वारा प्रतिबिंब लिया गया है, जिसे ऊपर दिए गए चित्र में दिखाया गया है। चित्र और अंतरिक्ष यान की स्थिति पैमाने पर नहीं खींची गई है और यह केवल उदाहरण के लिए है।

मई 2024 के सौर तूफान के दौरान, वैज्ञानिकों ने एक असामान्य चीज़ देखी: सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, जो सौर तूफान के अंदर मुड़ी हुई रस्सियों की तरह होते हैं, तूफान के भीतर टूटकर फिर से जुड़ रहे थे। आमतौर पर, एक सीएमई एक मुड़ी हुई "चुंबकीय रस्सी" लेकर चलता है जो पृथ्वी के पास आते ही पृथ्वी के चुंबकीय कवच से परस्पर क्रिया करती है। लेकिन इस बार, दो सीएमई अंतरिक्ष में टकराए और एक-दूसरे को इतनी ज़ोर से दबाया कि उनमें से एक के अंदर की चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएँ टूट गईं और नए ढ़ंग से फिर से जुड़ गईं, इस प्रक्रिया को चुंबकीय पुनर्संयोजन कहा जाता है। चुंबकीय क्षेत्र के इस अचानक विपर्यास ने तूफान के प्रभाव को पहले से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बना दिया। उपग्रहों ने कणों की अचानक गति बढ़ने का भी पता लगाया, जो उनकी ऊर्जा में वृद्धि का संकेत है, तथा चुंबकीय पुनर्संयोजन घटना की पुष्टि करता है।

इस खोज के केंद्र में भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-एल1 है, जिसने छह अमेरिकी उपग्रहों (नासा के विंड, एसीई, थेमिस-सी, स्टीरियो-ए, एमएमएस और नासा-एनओएए संयुक्त मिशन डीएससीओवीआर) के साथ मिलकर काम किया। शोधकर्ता पहली बार अंतरिक्ष के कई सुविधाजनक बिंदुओं से एक ही अत्यधिक शक्तिशाली सौर तूफान का अध्ययन कर सके। भारत के आदित्य-एल1 मिशन से सटीक चुंबकीय क्षेत्र माप की बदौलत, वैज्ञानिक इस पुनर्संयोजन क्षेत्र का मानचित्रण करने में सक्षम हुए। उन्होंने पाया कि जिस क्षेत्र में सीएमई का चुंबकीय क्षेत्र टूट फिर से जुड़ रहा था, वह बहुत बड़ा था - लगभग 1.3 मिलियन किलोमीटर चौड़ा, यानी पृथ्वी के आकार का लगभग 100 गुना। यह पहला मौका था जब सीएमई के अंदर इतना बड़ा चुंबकीय विखंडन और पुनर्संयोजन देखा गया था।

यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सूर्य से पृथ्वी की ओर आते समय सौर तूफानों के विकास के बारे में हमारी समझ बढ़ती है। यह वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के बढ़ते नेतृत्व को दर्शाता है। आदित्य-एल1 के योगदान से, भारत अब शक्तिशाली सौर तूफानों को समझने और उनकी भविष्यवाणी करने के लिए बेहतर रूप से तैयार है।

संदर्भः

शिबोतोष बिस्वास, अंकुश भास्कर, अनिल राघव, अजय कुमार, कल्पेश घाघ, स्मिता वी. थंपी एवं विपिन के. यादव। “पिंचिंग ऑफ आईसीएमई फलक्स रोपः अंप्रिसिडेंटेड मल्टीप्वाइंट ऑव्ज़रवेशंस ऑफ इंटरनल मैगनेटिक रिकनेकटिंग ड्यूरिंग गैनन सुपरस्ट्रॉम।” DOI: 10.3847/2041-8213/adfe60, दी एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स, (2025)।.